Thursday 14 June 2012

जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती

सुबह जब तक तेरी आवाज़ कानों में नहीं पड़ती ,
मुझे ये ज़िंदगी हमदम नहीं है ज़िंदगी लगती |
तू मुझको माफ कर दे मैं तेरी परछाई हूँ मालिक ,
कि तेरे बिन मेरी हस्ती मुझे हस्ती नहीं लगती |
बहुत चाहा है तुझको और पूजा है तुझे मैंने ,
कि  तुझ बिन मंदिरों कि मूर्तियां ईश्वर नहीं लगती |
तू धडकन में तू सांसों में तू पलकों में तू आँखों में ,
कि मुझको मुझमे तू दिखता है , खुद में मैं नहीं दिखती|
जो देखूं आइना तो रो ही पड़ती हैं मेरी आँखें ,
कि अपने जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती|

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