Monday 18 June 2012

मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी

मुझे लगा था कि मैं 
तेरे ह्रदय कि आवयश्कता थी ,
धडकन  कि तरह ,
जिसके आभाव में ह्रदय निर्जीव है|
मुझे लगा था मैं तेरी 
आँखों कि ज़रूरत थी
उस काले गोले कि तरह 
जो  पुतलियों ले बीच खेल कर 
तुझे  स्वप्न लोक कि सैर कराता था |
मुझे लगा तेरे हांथों को मेरे हांथो की 
अपेच्छा थी ,
कहा था तुमने कि ,
बस मैं तुम्हारा हाँथ थाम लूँ 
फिर तुम अकेले नहीं रह जाओगे 
याद है तुमने एक रोज मिन्नत कि थी 
कि तूम कुछ नहीं बिन हमारे 
खा ली थी अपने माँ बाबा कि कसम ,
की कभी नहीं छोडोगे 
हमारा साथ ,
हमारा हाँथ ,
पर आज जब तुम  मेरी अवहेलना कर 
मेरे प्यार को अनसुना कर 
चले गए ,
तब भी जाने किस कारण 
भय युक्त हूँ मैं 
कि क्या होगा तुम्हारे हांथों का जिसे मेरे हांथो कि ज़रूरत थी ,
क्या होगा तुम्हारी सांसों का जिसने मेरे साथ सांसे ली थी ,
क्या होगा तुम्हारी आँखों का जिसमे कभी तुमने मेरे स्वप्न संजोये थे ,
क्या होगा उस ह्रदय का जिसके आँगन में हम सोये थे ,
और क्या होगा मेरे उन माँ बाबा का 
जिनकी झूठी कसम खा ,
तुम चले गए मुझे तज कर |
और आज किसी और ने नहीं 
तुम्हारे कर्मों ने ही 
एहसास कराया है हमें ,
मैं  तो बस भूख थी 
जिसने तेरे अहम का पेट भरा था ,
मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी 
मैं  कभी तेरे मन कि वीणा का तार नहीं थी |

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