Sunday 17 June 2012

मौन के शब्द

मौन के भी आज मैंने शब्द सुने हैं ,
और उसके साथ नए ख्वाब बुने हैं|

बोलता तो कुछ नहीं बस साथ चलता है ,
ज़िंदगी में ऐसे फसाने न सुने हैं |

आज पहली बार मैंने शख्स वो देखा ,
जिसने खुद ही दर्द के पैमाने चुने हैं |

कौन कहता है कि फफक कर वो रोया था ,
जिसके पैरों ने हमारे ज़ख्म चुने हैं |

उसकी  मुस्कुराहटों और उसकी अदा में , 
ज़ख्म ले के प्यार के अफ़साने बुने हैं |

No comments:

Post a Comment