फिर मुझे उलाहने दे कर
उसने कोशिश की है
मुझे खुद से अलग करने की ।
पर उसे मालूम नहीं की
उसे मुझसे भिन्न करने का साहस
अब स्वयं शिव में नहीं ,
वो भी घबराता है
देख मेरा प्रेम उसके प्रति ।
शिव भी अचरज में हैं ,
कैसे अलग करें उसे जो सती
जैसा प्रेम लेकर
अवतरित हुयी है धरती पर ,
उसे अपना शिव मान
जी रही है जीवन ।
उलाहना का गरल अब
उसकी किस्मत का हिस्सा है ,
शिव ने जो विष अपने गरल में धारण किया ,
नहीं उतरने दिया शरीर के बाकि हिस्सों में ,
नहीं थी सामर्थ्य शिव में
इसीलिए दे कर उलाहना
दे दिया शिव ने
सती को गरल वरदान में ।
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