Wednesday 30 May 2012

मैं तुमको प्यार करता हूँ तुम्हे बतला न पाऊँगा ,
तुम्हारा ही रहूँगा ये तुम्हे जतला न पाऊंगा ,
समझ पाओ तो मेरे मौन की  भाषा समझ लेना ,
मैं आँखों से बता दूंगा लबों पर कुछ न लाऊंगा |
मैं  जिंदा हूँ तो तेरे साथ परछाई सरीखा हूँ ,
जो मर जाऊँगा तो भी साथ तज तेरा न जाऊँगा |


बदनसीब हूँ मैं

लोग कहते हैं बदनसीब हूँ मैं ,
कोई भी साथ तक नहीं चलता ,
जो भी आता है वो एहसान सा कर जाता है 
राह में दीप तक नहीं जलता,
और तो और तू भी मेरा नहीं ,
जिसके एहसास से मैं जिंदा हूँ ,
पंख जिसके क़तर दिए हैं गए ,
मैं वो टूटा हुआ परिंदा हूँ ,
तुझको मालूम नहीं है शायद 
एक तू ही है मुझे छोड़ जो नहीं सकता ,
मेरी सांसों में बस गया है ज़िंदगी कि तरह ,
तू अलग जो हुआ तो मैं भी जी नहीं सकता |

मेरा आइना है तू

मेरा आइना है तू ,
तुझमे मैं खुद को ढूंढ लेती हूँ ,
अपनी परछाईं भी पहचान नहीं पाती हूँ ,
जब कभी सांस तेरी सांस के संग लेती हूँ |
क्या बता पायेगा तू मुझको ,
मुझको हर शय में नज़र किसलिए तू आता है ,
तू मुझे दर्द भी देता है अगर जान मेरी ,
तो भी तू जान से प्यारा क्यूँ हुआ जाता है ,
तुझको न देखूं तो आँखों में नमी होती है ,
तुझको न सोचूँ तो दिल भी उदास होता है ,
हाँथ बस तेरी ही तस्वीर रचा करते हैं,
और ज़हन भी मेरा बस तेरा हुआ जाता है ,
पाँव भी तेरी तरफ बेवजह ही बढ़ते  हैं ,
कौन है तू मेरा किस दुनिया से तू आया है ,
जब कभी ये सवाल दिल में मेरे आता है ,
फिर वही लगता है ,
मेरा आइना है तू ,
तुझमे मैं खुद को ढूंढ लेती हूँ |

Tuesday 29 May 2012

ह्रदय में प्यार सच्चा हो तो ईश्वर जान लेता है,
बुरे बन्दों की बदनीयती खुदा पहचान लेता है ,
इरादे नेक हों तो राह हर आसान होती है,
नहीं तो खुद खुदा राहों में पत्थर डाल  देता है...............

मकसद

मेरे दिल में इरादे हैं कि कुछ कर के दिखाऊँ मैं ,
जो मुझको भूल बैठे हैं उन्हें फिर याद आऊँ मैं ,
ये दुनिया आज जो पैसों पकी खातिर जी रही है बस,
उसे फिर प्यार का मकसद समझा भी पाऊँ मैं.

ठुकरा न पाया वो

कहाँ तक साथ चलना है हमें बतला न पाया वो ,
नहीं था प्यार हमसे ये कभी जतला न पाया वो ,
हमारे प्यार में ताकत थी इतनी ऐ- जहाँ वालों ,
कि हो कर गैर का भी हमको फिर ठुकरा न पाया वो |

मान

हमारी याद जब आये हमें आवाज़ दे देना ,
हमारी ज़िंदगी को फिर नयी परवाज़ दे देना ,
नफा नुक्सान से अब फर्क कोई भी नहीं हमको ,
तू गर कुछ कर सके तो बस ज़रा सा मान दे देना |
जो कहता था हमें अपना वही समझा नहीं हमको
गया फिर छोड़ कर ऐसे कि तनहा कर गया हमको
बहुत ही तेज कर आवाज़ को वो बोलता है ये
कि दुनिया का हर एक ठग , झूठ कह कर ठग गया हमको |
करी उम्मीद हमने जब कभी उससे कि वो थामे
तुम्हारा कुछ नहीं हूँ मैं ये कह कर तज गया हमको |
कब समझोगे तुम हमारे आने का मकसद
अब तो किताब बंद करके जा रहे हैं हम |
कुछ शाख से टूटे हुए पत्तों कि याद में
इस बार दरख्तों ने नए फल नहीं दिए|

क्यूँ कम लिखे हैं

मेरे नसीब में बस चंद अश्क लिखे हैं ,
मुझे गिला है खुदा से कि क्यूँ कम लिखे हैं|

मायने

कोई भी दूर तक साथ में नहीं चलता , 
करवों में अक्सर लोग बदल जाते हैं |
मायने  ज़िंदगी के होते हैं आसान बहुत ,
इश्क हों जाये तो मुश्किल से नज़र आते हैं |

ज़िंदगी

किसी कि ज़िंदगी बन कर चले थे राह हम जिनकी , 
बदल कर राह उल्फत की वो काफ़िर हो गए हैं अब |

आदतन मजबूर हैं हम

आदतन मजबूर हैं हम साथ चलने के लिए ,
और फिर खा करके धोखा हाथ मलने के लिए |
हम गुनाहों से बहुत हैं दूर लेकिन क्या करें ,
 हो गए मजबूर तुमको प्यार करने के लिए |
वो हमारा हो न पाया हमने सब कुछ दे दिया,
और वो जिंदा है हमको दर्द देने के लिए |
तुम जो आये ज़िन्दगी मेरी मुकम्मल हो गयी,
लोग क्यूँ कहते हैं तुमको आजमाने के लिए|
आदतन मजबूर हैं हम साथ चलने के लिए |

चाँद की याद

लुट गयी रात किसी कमसिन सी ,
आसमां पर कोई भी चाँद न था ,
फिर सितारों को आ गया रोना ,
रुंध गयी वो गले की आवाजें ,
देखा जब चाँद को धरती के साइंस दानों ने ,
गुम हुआ अपने घर की नीली अंगनाई से ,
तब हुआ दर्द जगी प्यास उससे मिलने की ,
याद आया कोई था पास मेरे ,
जिसको मई रोज़ ही ठुकराता था,
आज जब रत अमावास की काली आयी है ,
बादलों में छिपा है चाँद मेरा ,
तब मुझे चाँद की याद आयी है..................

बस तुम्हारा हो गया

क्या तुम्हे एहसास है ये कोई रोता है कहीं
जिस्म कि ख्वाहिश तुम्हे थी वो तुम्हे दिल दे गया |
तुमने गलती कह दिया जिस पल को मेरे दोस्त सुन
वो उसी पल से तुम्हारा बस तुम्हारा हो गया |

हमारा गैर से मिलना

बहुत अच्छा लगा है आज उसने हक जताया जब
उसे अच्छा नहीं लगता हमारा गैर से मिलना |

मैं रो नहीं पाता

हमें तो दर्द का एहसास भी अब हो नहीं पाता
हुआ है सुन्न सा ये मन कोई मन छू नहीं पाता
जो तू छू ले तो संदल के सरीखा तन महक जाये
नहीं तो हाले दिल ऐसा है कि मैं रो नहीं पाता |

जन्नत सा असर होगा

अगर तू साथ देदे तो मुकम्मल ये जहाँ होगा
लबों पर मुस्कराहट और सपनों का शहर होगा
मैं तेरी शहजादी और तू मेरा कुंवर बनकर
रहेंगे साथ जब धरती पे जन्नत सा असर होगा |

धरती आकाश

मैं धरती तू आकाश प्रिये ,
जाने किस छोर मिलेंगे हम ,
पर इतना है विश्वास हमें ,
हर लम्हा साथ चलेंगे हम |

अच्छा नहीं लगता

बहुत से दोस्त होंगे आपके पर हम अकेले हैं
किसी से आपका जुडना हमें अच्छा नहीं लगता |

तुम्हारे पास होते हैं

तू मुझको भूल जाता है नहीं पहचानता अक्सर
हमारा हाल है ये बस तुम्हारे साथ रहते हैं
जो जगते हैं तो दिल में साथ लेकर तुमको चलते हैं
जो सोते हैं तो सपनों में तुम्हारे पास होते हैं |

काफ़िर

किसी कि ज़िंदगी बन कर चले थे राह हम जिनकी , 
बदल कर राह उल्फत की वो काफ़िर हो गए हैं अब |

हमारा ज़ख्म को सिलना

बहुत अच्छा लगा है आज उसने हक जताया जब
उसे अच्छा नहीं लगता हमारा गैर से मिलना |

कली बन कर महकना तो हमारा सबको भाया था ,
नहीं मंज़ूर था लेकिन हमारा फूल सा खिलना |

हमारे ज़ख़्म जब तक दिख रहे थे लोग थे खुश पर ,
किसी को भी नहीं भाया हमारा ज़ख्म को सिलना |

हमें दोज़ख मिला तो दुश्मनों ने दीप जलवाए ,
मगर कुछ दोस्तों भी खुश थे वजह जन्नत का न मिलना |

चलने का हुनर सीखा नहीं जाता

बहुत डरते हैं जतलाने से जिनको प्यार है तुमसे ,
मगर इस तरह अपनो को कभी छोड़ा नहीं जाता |
मुबारक वक्त जब आता है राहें खुद ही बनती हैं ,
जबरदस्ती किसी दरिया का रुख मोड़ा नहीं जाता |
ज़रा सा वक्त दे उसको परखने के लिए रिश्ते ,
कि पल भर में किसी से साथ यूँ जोड़ा नहीं जाता |
नहीं ताकत है लोगों में कि बढ़ कर थाम लें उनको ,
कि जिन लोगों से चलने का हुनर सीखा नहीं जाता|

कुछ न कहा हमें

मन भर गया है इतनी बात हो गयी है कल
मेरे लौटने पे आज उसने रोका नहीं हमें |
बैठे रहे हम देर तलक कुछ तो कहेगा ,
वो गैर से लिपटा रहा कुछ न कहा हमें |

हम साथ लाए हैं

जनम के साथ ही अंगार को हम साथ लाए हैं
ह्रदय में हम दहकती सी ज्वाल लाए हैं
बदल देगी जहाँ को अब हमारी एक ही आहट
कि हर आहट में हम अपनी नया तूफ़ान लाए हैं |

बस एक तुम ही मेरे काबिल हो

हमें गर रोकना होता तुम्हे हम जान दे देते ,
सुकूं इतना तो रहता तुम मेरी मैय्यत में शामिल हो ,
दफ़न होते तो अपनी बंद आँखों से तुम्हे तकते
बता देते तुम्हे बस एक तुम ही मेरे काबिल हो |

गाज़ गिरा देते हो

तुम हमें होने का एहसास दिला देते हो ,
सामने आते नहीं बस हाथ हिला देते हो ,
तंग करते हो हमें सपनो में अपना कह कर
और फिर से मुकर के गाज़ गिरा देते हो |

राह तका करते थे

कल तक तो हम चौबारों पर ,
मिटटी के घर बार सज़ा कर ,
अपनी गुडिया के गुड्डे की राह तका करते थे ,
आज खड़े हम बीच सड़क पर ,
अपने आँचल को फैला कर ,
उसी एक अंजन नज़र की देखो बाँट तका करते हैं ,
निर्मोही ने जाल बिछा कर ,
मुझको मछली सा तडपा कर,
ऐसा स्वर्ग बसाया है की हम उसमे निस दिन बसते हैं |

जब उसकी आँखों में अपनी परछाईं पायी थी मैंने |

कितने सालों बाद लगाई थी माथे पर बिंदिया मैंने 
जब उसकी आँखों में अपनी परछाईं पायी थी मैंने |
सब कुछ करना भूल गयी थी ,
जीना मरना भूल गयी थी ,
मैं हूँ कौन बनी किस खातिर, 
खुद  को पढना भूल गयी थी ,
कभी कभी लगता था मुझको ,
मेरे अंदर बसने वाली ,
वो छोटी नन्ही सी गुड़िया,
मुझसे  बिना बताये कारण ,
अंदर अंदर टूट गयी थी |
पर उसने छू दिया हमें जब तन संदल सा महक गया था,
मन के अंदर बसने वाला चंचल बालक बहक गया था ,
कितने बरसों बाद ही बरबस कंगना पहन लिया था मैंने 
जब उसके उस प्रेम पाठ का मनन गहन कर लिया था मैंने |
लगता था वो साथ रहे बस 
कभी दूर वो जा न पाए ,
उसके सारे दुःख मेरे हों
सुख मेरे उसको मिल जायें ,
सम्पुट पट उसके मेरे मस्तक 
पर यूँ चुम्बन कर जाये ,
माथे कि बिंदिया शरमा कर ,
उससे अपने नैन चुराए ,
पर उसने छू लिया ह्रदय को यह कह कर  हों सिर्फ हमारी 
तुम पर दुनिया कि सारी खुशियाँ मैं कर दूं वारी ,
नहीं चाहिए तन के बंधन ,मन से अपने हमें बांध लो ,
अपने ह्रदय ताल में सजने वाला मुझको कमाल जान लो ,
इतना  सुन कर नयनों में फिर कजरा डाल लिया था मैंने 
और खुशी के सारे आँसू पल्लू बाँध लिए थे मैंने |

उठा लो पालकी |

अब नहीं सही जाती मुझसे ,
ये बिन बादल बरसात ,
उठा लो पालकी |
अम्मा कि वो भीगी पलकें 
बाबुल कि अँखियाँ नीर भरी ,
भईया का रोया रोया मन 
सखियों कि बतियाँ प्रीत भरी ,
अब नहीं सही जाती ,
मुझसे ये विकट घड़ी,
उठा लो पालकी |
रूठे अँगना का मुझे बुलाना ,
ड्योढ़ी का रोना चिल्लाना ,
अब नहीं सही जाती मुझसे ,
ये मिटती सी मुस्कान ,
उठा लो पालकी |
मेरा गगरा भी रोया है ,
जिसने कभी भिगोया था आँचल को मेरे ,
वो बुढिया भी दूर कड़ी देती है आशीर्वाद ,
खिलाया था जिसको गुड़ रोटी मैंने ,
अब नहीं सहे जाते मुझसे ये बिन बांधे व्यहवार ,
उठा लो पालकी |

मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा


सच कहता हूँ खो जाऊँगा ,
ये वाह्य कलेवर तज जाऊँगा ,
मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा |
स्वप्नों के यौवन से निकालो ,
और मुझको अपना लो वरना ,
दूर चला जाऊँगा ,
चिर निद्रा में सो जाऊँगा ,
मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा |
तुम धरम करम की बातों से मत फुसलाओ ,
कुछ खुद बदलो कुछ ह्रदय मेरा भी बहलाओ ,
वरना आँखों के सागर कि जलधारा में ,
मैं बन जलपरी प्रसन्न मन से इठलाऊंगा ,
मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा |
अनुभव कि चक्की से जीवन को मत पीसो
बस वही करो जो ह्रदय तुम्हारा कहता है ,
एक ऐसा पल अन्यथा आएगा जीवन में ,
जब अम्बर पर मैं ध्रुव बन कर तड़पाऊँगा ,
मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा
चिर निद्रा में सो जाऊँगा ,
मैं पंछी बन उड़ जाऊँगा ||

खत

चंद लफ़्ज़ों को नाप तौल के रख रखा है 
चंद अलफ़ाज़ टीएरे खत से चुरा रखे हैं '
चंद लाइने थी जिनको मिटाया था तुमने ,
उनको अब हमने तुम्हारे लिए रख रखा है ,
बस यही सोच रही हूँ अरसाल करूं या न करूं,
एक  खत कब से तेरे नाम पे लिख रखा है |

Sunday 27 May 2012

वो दीवाली कि रात
बहुत उजियाली थी ,
बाबू ,सरला, मोना , विमला
सब खेल रहे थे ,
फिर उसकी आँखों में क्यूँ
एक उदासी थी |
वो भी तो छोटा बच्चा था
उसका भी तो जी करता था
कि उचक पड़े
और आसमान के सारे तारे
अपनी झोली में भर ले |
उसके घर के अंदर कोई था खांस रहा
और दर्द भरी आवाज़ से उसे पुकार रहा
लल्ला कुछ खाने को दे दे
बस एक निवाला ही देदे ,
वो दौड पड़ा घर के बहार
सरला कि अम्मा से बोला
चाची तू घर पर  बैठ ज़रा
मैं आता हूँ एक पल में बस ,


हमने देखा है

हंसी आती नहीं हमको कि अब तो हाल ऐसा है 
किसी अपने को खंजर मारते हमने भी देखा है |

वो जो बैठे हैं संसद में है रखवाले सियासत के ,
उन्ही को देश का परचम गिराते हमने देखा है |

सुना था हमने दादी से कि सोने की था ये चिड़िया ,
वतन जिस पर कि कर्जों का लगा अम्बार देखा है |

जिसे हमने मसीहा मान कर मंदिर में रखा है ,
उसी को हमने कत्लो आम के मंज़र में देखा है |

तेरा कोई कसूर नहीं

मेरी ही गलती है सारी 
तेरा कोई कसूर नहीं
मरने का दस्तूर न आया 
जीने का भी शऊर नहीं  |
दिल के दरवाज़े पर सांकल न होती तो अच्छा था ,
हर पल ये एहसास तो रहता तू थोड़ा मजबूर सही |

दीवारों के कान नहीं थे इसका है अफ़सोस हमें ,
वरना कोई ये तो बताता उसको हम मंज़ूर नहीं |

पहली बार ये बारिश हमको अपनी अपनी नहीं लगी ,
उससे मिलकर न जाने क्यूँ ये मुझसे बेनूर हुयी |

मरने का दस्तूर न आया जीने का भी शऊर नहीं |

मैं तुम्हारी गोद में सर रख के सोना चाहती हूँ |

ज़िंदगी का अंत हो जब 
साथ होना चाहती हूँ ,
मैं तुम्हारी गोद में सर रख के सोना चाहती हूँ |
तेरी बाँहों में सिमट कर 
ज़िंदगी मैंने है पाई ,
तेरी बाँहों में ही छिप कर मौन होना चाहती हूँ |
मैं तुम्हारी गोद में सर रख के सोना चाहती हूँ |

मेरी आँखें तुझको देखे बिन
ना होने बंद पाएं ,
मैं खुदा से बस यही एक कौल लेना चाहती हूँ |

मैं तुम्हारी गोद में सर रख के सोना चाहती हूँ |

एक लड़की जगती रहती है |

एक लड़की जगती रहती है ,
जब भी तू सोया रहता है 
वो तुझको तकती रहती है ,
एक लड़की जगती रहती है |
तू लड़ता और झगड़ता है ,
उल्टा सीधा भी कहता है ,
पर वो तेरी कडवी बातों को ,
मधु सा चखती रहती है ,
एक लड़की जगती रहती है |

कितनी कोशिश भी कर ले तू ,
वो तुझे छोड़ न जायेगी ,
तू जितना उसे भगायेगा ,
वो पास दौड कर आएगी ,
तेरे क़दमों के निशां ढूंढ ,
वो उन पर चलती रहती है ,
एक लड़की जगती रहती है |


तू खाता है तब खाती है 
तेरे जगाने से पहले वो 
उठ करके तुझे उठाती है
तू छोड़ गया है उसको पर 
वो रास्ता तकती रहती है ,
एक लड़की जगती रहती है |

याद

अभी  याद  आते  हैं  वो  दिन  जब  खाना  खाने  की  तहज़ीब  भी  नहीं  थी  और  स्कूल  पहुँच  कर  प्रिंसिपल  सर  की  डांट  से  बचने  के  लिए  अपने  ही  रुमाल  से  अपने  जूते  साफ़  किया  करते  थे .और  उनके  जाते  ही  उनके  पीछे  उन्हें  मुह  चिढाया  करते  थे .

सभी  के  जीवन  की  कुछ  यादें  





चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है ............

नन्हे  हांथों  में  होता  था  बस्ता  खुद  से  भी  भारी,
फिर  भी  पैदल  ही  जाते  थे , करते  थे  हम  शैतानी ,
रोज़  लडाई  मारा  पीटी  गुत्थम  गुत्था  होती  थी ,
लड़  कर  जब  रोती  थी  सहेली , खुद  की  भी  आँखे  रोती  थी ,
खो  खो  का  वो  खेल  याद  है , जबरन  धक्का  देते  थे ,
आउट  करने  के  चक्कर  में  घंटो  दौड़ा  देते  थे ,

बाबा  जी  के  बैस्कोपे  की  याद  कहानी  आती  है ,
इमली  की  सी  खट्टी  यादें  , भेल  पूरी  तरसाती  है

चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट  याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम  हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है |............



बचपन  के  वो  यार  दोस्त  जिनसे  लड़ते  ही  बीता  पल ,
याद बुढ़ापे  में  आते  हैं  , मन  होता  है  फिर  बेकल ,
लौट  के  जब  उस  गली  से  गुज़रें  , आंसू  की  लहर  सी  आती  है ,
कैथे  की  कडवाहट  भी  तब  मीठी  सी  हो  जाती  है ,

चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम  हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है ............

डग थे छोटे मगर सदा था मेरे विश्वासों में दम

छोटे  छोटे  कदमों  से  हम  नापते  थे  आकाश  का  कद ,
डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था मेरे  विश्वासों  में  दम ,
लगता  था  चोटी  पर  जा  कर  परचम  लहरा  दूं  अपना ,
और  सत्य  कर  डालूँ  अपनी  आँखों  में  बसता जो  सपना ,
कोई  रोक  न  पाया  मुझको , था  न  इरादों  में  कुछ  कम ,


डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था  मेरे  विश्वासों  में  दम।

धरती  अपनी  सी  लगती  थी  , आसमान  को  ओढ़े  थी ,
फूलों  से  थी  दोस्ती  अपनी , तितलियों  संग  खेली  थी ,
सबको  अपना  ही  कहती  थी  , ऐसा  था  ये  भोला  मन ,


डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था  मेरे  विश्वासों  में  दम ।

क्रोध

मैंने अरमानो की बस्ती को सिन्दूरी करके ,
उसमे कुछ इस तरह से आग लगा डाली है,
जैसे आकाश भी लोहित हो धधक जाता है,
जब एक नन्ही किरण सूर्य की गुस्साती है |

माँ

माँ किसी चेहरे का नाम नहीं ,
माँ तो वो है जिसे आराम नहीं ,
कभी रोटी से लिपट जाती है चटनी की तरह ,
और कभी मुझको झिड़कने के सिवा , 
उसके पास कोई और काम नहीं.................
बस सुबह उठ के चिडचिडाना शुरू करती है ,
सुबह उठता क्यूँ नहीं कह के मुझसे लड़ती है ,
लंच देती है मुझे बस्ता सही करती है, 
मेरी हर बात पे वो रोक टोक करती है ,
हाँथ में झाड़ू लिए दिन दिन भर वो ,
मेरा फैलाये हुए घर को साफ़ करती है ,

और जब शाम को आते है हमारे पापा ,

"क्या किया करती हो दिन भर ?" ये सुना करती है ,

हाँ माँ किसी चेहरे का नाम नहीं

वो तो वो है जिसे आराम नहीं.............................

रोज का सिर्फ यही ढर्रा है,

उनको तो टुन्न फुन्न करना है

कभी बस्ते की किताबों के लिए ,

कभी पढ़ने के रिवाजों के लिए ,

कभी मेरे सब्जी नहीं खाने के लिए ,

और कभी दूध बचाने के लिए,

कभी कहती है की सारा दिन मैं घर में रहता हूँ ,

कभी कहती हैं शनि पैर में है एक पल घर में नहीं रहता हूँ ,

कभी लगता है छोड़ छाड़ के सब भाग जाऊं,

पर मुझे याद फिर आ जाता है,

माँ किसी चेहरे का नाम नहीं,

माँ तो वो है जिसे आराम नहीं |


और तुम्ही भगवान में |

जिन दोनों के बीच हुए हैं सौदे उस व्यापार में ,
वही जानते कौन नफे में कौन रहा नुक्सान में |
प्यार की कश्ती खेने वाला मंझधारों से नहीं डरा ,
उसको तो आराम मिला है नव चला तूफ़ान में |
उसको चाँद दिखा कर जिसने चाँद ज़मीं का कह डाला ,
वो क्या जाने ढूंढ रहा है दाग कोई ईमान में |
अश्कों का क्या बह जायेंगे पर उन आँखों का क्या हो ,
जो पत्थर हो गयी राम बस एक तेरे दीदार में |
एक बार तो देख पलट कर मुझसे यूँ बेज़ार न हो ,
वरना लुट जायेंगें हम तो खड़े खड़े बाज़ार में |
मंदिर मस्जिद की बातों से हमको अब है क्या लेना ,
अल्ला की राहों में तुम हो और तुम्ही भगवान में  |

माया जी की माया

माया जी की माया में हैं उलझी ये मायापुरी ,
माया जी की माया का ही हर और शोर है ,
चारों और माया जी की मायामयी मूर्तियां ,
और माया जी की माया का न ओर छोर है |
अद्भुद है ये जाने कैसी है माया मेरी ,
सबकी बहन है ये बात अनमोल है ,
पर मेरी बहना का प्यार ज़रा देखिये तो ,
भाइयों का हक़ वो तो कर गयी गोल है |
माया जी की माया का ही हर ओर शोर है |
एक बार बनता है लाख बार टूटता है ,
नाम पे वो भीम जी के बार बार लूटता है ,
माया खर्च हो रही है , देखो व्यर्थ हो रही है ,
फिर भी सुन्दरीकरण  का ही मंत्र फूटता है ,
मायामयी नगरी में बसती हमारी माया ,
उनके घोटालों का न फिर कहीं शोर है ,
और माया जी की माया का न ओर छोर है |



Friday 25 May 2012

पहली याद

याद  है  मुझको  बचपन  के  दिन ,
सुबह  जगाये  जाते  थे ,
हम  रोते  थे  नहीं  नहाना ,
पर  नहलाये  जाते  थे |

रोज़  वही  रोटी  और  सब्जी  जब  मिलती  थी  खाने  को ,
रोज़  नहीं  मिलता  था  हमको  पार्क  खेलने  जाने  को ,
रोज़  वही  होमवर्क  का  झंझट ,
रोज़  वही  आना  कानी ,
कितनी  कोशिश  पर  भी  हो  ना  पाती थी  मनमानी ,

मम्मी  दिन  भर  धमकती  थी .....
शाम  को  पापा  आने  दो
और  तुम्हारी  दिन  भर  की  मुझे  शैतानी  बतलाने  दो ...
पढ़ने  लिखने  में  तो  नानी  याद  तुम्हे  आ  जाती  है
खेल  कूद  की  बातें  तुमको  इतना  क्यों  ललचाती  है .......

मम्मी  की  धमकी  से  डर  कर  , पल  भर  को  चुप  होती  थी ,
पापा  के  आ  जाने  पर  मैं  बन  बन  कर  फिर  रोटी  थी ,

मम्मी  ने डाटा   है  मुझको  पापा  को  बतलाती  थी .........
अभी  बहुत  छोटी  हूँ  पापा  ये  कह  कर  समझती  थी .......

पापा  मेरे  गोद  बिठा  कर  पहले  गले  लगते  थे ,
फिर  अपनी  मीठी  बातों  का  शहद  मुझे  चखलाते  थे .....
समझाते  थे  बिट्टो  मेरी  पढ़ना  बहुत  ज़रूरी  है
ना  पढ़ना  तो  बिटिया  मेरी  बहुत  बड़ी  कमजोरी  है ...

समझदार  बन  जोगी  ,परियों  की  रानी  आएगी ...
दूर  देश  की  सैर  कराने  वो  तुमको  ले  जाएगी ...
मम्मी  पापा  लाड  करेंगे .....चोकलेट दिलवायेंगे
जब  मेरी  बिटिया  रानी  के  अच्छे  नंबर  आयेंगे |..................................

जा रहा हूँ

फिर एक गुनाह करने जा रहा हूँ ,
मैं तुझ पर आज मरने जा रहा हूँ |

कोई समझेगा मेरा मौन ना अब , 
इसी कारन मैं कहने जा रहा हूँ |

मै था इन्सान कल तक आज पर मै ,
जहाँ की राह चलने जा रहा हूँ   |

बहुत चाहत थी कुछ हो नाम मेरा ,
मै अब बदनाम  होने जा रहा हूँ |


मैं सहमा सा रहा इस बीड़ में पर ,

उचक कर चाँद छूने जा रहा हूँ|

मै तुझ पर आज मरने जा रहा हूँ |

श्रापों की छाया ऐसी है

आतंकित मन स्वर क्रंदन है
भाषा कुछ टूटी फूटी है ,
जाने क्यूँ जीवन पर मेरे ,
श्रापों की छाया ऐसी है |
वो भी मेरा साथ न देगा ,
जो अपना सा लगता था ,
मेरे दुःख में मुझसे पहले ,
मेरा हाँथ पकड़ता था
ज़ख्मों की गिनती कर कर के ,
अनामिका मुझसे रूठी है ,
जाने क्यूँ जीवन पर मेरे
श्रापों की छाया ऐसी है |

मौन

मौन था
और मौन में
निष्काम आयोजन छिपा था
एक सभा का ,
और फिर था ,
मौन ,
मुझको वो निमंत्रण
जो मिला था |
मौन भाषा कि तहों में
अनगिनत प्रश्नों के उत्तर
भी छिपे थे
किन्तु वह भी मौन धारे ही खड़े थे |
और मैं भी साथ उनके ,
मौन को खुद में समेटे ,
मौन प्रश्नों और उनके
अनकहे हर एक उत्तर में
स्वयं को ढूँढती थी ,
और मुझको फिर मिला जो
मौन था
और मौन में ........................
हर तरफ सुनसान राहें
खाली खाली सब निगाहें ,
हर अधर पर खेलती वो मौन और बेजान आहें ,
किस तरह जीवंत होंगी
ये स्वयं से पूछती थी ,
और मुझको फिर मिला जो ,
मौन था ,
और मौन में .................................
महफिलों में भी स्वयं को मौन रख कर
था कहा जो सत्य वह
झूठा हुआ था
किसलिए
क्या वह अकेला पड़ गया था इसलिए
प्रश्न मुझको छल रहा था
और सच में मैं अकेले ,
प्रश्न कि गहराइयों से लड़ रहा था ,
और मुझको फिर मिला जो
मौन था
और मौन में ............................|

सती

तेरे रूप में
सृष्टि
ब्रह्मांड और स्वयं ब्रह्म को पा
हे शिव
मैं पहचान गयी तुम्हे
मन कलयुग में जन्मी
पर फिर भी वही आत्मा है
जो गौरा ने पाई थी
तुमसे अलग नहीं है कुछ अस्तित्व हमारा
इसी कारण
नित्य जपती हूँ
ओम् नमः शिवाय
सत्यम शिवम सुन्दरम |
पर मेरा प्रेम
तुम्हे जीत न सका
और तुम सावित्री का अपमान कर
अहिल्या को पत्थर का छोड़
सीता को कलंकित कर
मुझे पुनः जन्म मृत्यू के
बंधन में छोड़ कर
चले गए |

स्वप्न

मैंने आज
एक अनोखा स्वप्न देखा
जिसमे एक छोटा सा बालक
फूलों को एक ओर हटा
काँटों से खेल रहा था |
और तभी
अचानक एक कांटा चुभ जाता है
और वह बिलख उठता है
माँ माँ |
तभी माँ जो आँगन के दूसरे कोने पर मांज रही थी बर्तन
बर्तनों को यूँ ही छोड़
करीब आती है
पहले पुचकारती है
धीमे से कांटा निकलती है
और फिर  कहती है
मेरे राज दुलारे
आज तू काँटों से खेल
तभी कल तुझे फूलों की सेज मिलेगी |