फिर वही दुखांत
क्या कभी सुख कि परिणति होगी
क्या कभी मेरे जीवन के इस कीचड़ में भी
कमल जन्म लेगा ;
क्या कभी कोई राम
मुझे भी अहिल्या कि तरह उद्धारेगा ,
बस इसी सोच में चला जा रहा था जीवन ,
हर ने आ कर भावनाओं के पत्थर फ़ेंक
मन में हलचल मचा दी ,
परन्तु ह्रदय सत्य कि समाधी पर था ,
भेद कर लिया उसने
क्या सुख देंगी तुझे यह छडिक जीवन में बंधी
जीवन से लड़ती
अपने सुख के लिए मरती कयाये |
तुझे तो सुख शिव कि शरण में लिखा है ,
जपते हुए
"सत्यम शिवम सुन्दरम"
और
"ओम् नमः शिवाय "
का जाप
तुझे जाना होगा अब इसी छण
जीवन के उस पार |
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