Sunday 24 June 2012

कुमार विश्वास जी के लिए |

कलरव जन्मा सूनेपन से , अभावों में ही भाव जगे ,
पीड़ा ने हँसाना सिखलाया , फूलों के ही दिल में घाव मिले ,
सरिताओं ने बह कर मुझको आगे बढ़ाना सिखलाया है ,
शैलों पर घन घन घिर मेघों ने राग मल्हार सुनाया है ,
जब दर्द भरी मधुशाला है तो हाला खाली क्यूँ होगी ,
वेदना ह्रदय में छुपी अगर तो आँखें खाली क्यूँ होंगी ,
तन मन तो खुद ही डूबा है , हर दर्द हमें पीना होगा ,
"विश्वास" सुनो मैं कहती हूँ , मरते दम तक जीना होगा|




ऊपर  कि कुछ पंक्तियाँ श्री कुमार विश्वास जी कि निम्न पंक्तियों से जन्मी हैं :-

"कलरव ने सूनापन सौंपा ,मुझको अभाव से भाव मिले,
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले,
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना,
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना,
पीडा की इस मधुशाला में,आँसू की खारी हाला में,
तन-मन जो आज डुबो देगा,वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है,तब तक मुझको जीना होगा ....."

No comments:

Post a Comment