Sunday 24 June 2012

समर्पण

समर्पण आज कल द्वापर कि रचनाओं में मिलता है ,
जहाँ राधा पुकारे तो किशन घर से निकलता है ,
तेरी आँखों में छिप कर रह गए थे चंद जो आँसू ,
उन्हें मोती समझने वाला मन अब तो न मिलता है |

1 comment:

  1. मैं समझाता हूँ के बस कवितायेँ नहीं तुम्हारे मन से निकले शब्द हैं |
    सच कह रही हों राधा और कृष्ण जैसा कोई तो अब नहीं है पर मेरा जीवन अब बस इसी खोज में गुज़रेगा कि तुम्हारे चेहरे पर सदा मुस्कान कैसे बनी रहे |

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