क्यूँ लग रहा है हमको छिपा कुछ रहे हों तुम ,
आँखों से अश्क पोछ के क्यूँ आ रहे हों तुम |
ये मज़हबी दुनिया है सियासत से जो है चलती ,
इसको वफ़ा का पाठ पढ़ा क्यूँ रहे हों तुम |
मजबूरियों को जिसने मुकद्दर समझ लिया ,
जीने कि राह उसको सिखा क्यूँ रहे हों तुम |
जिसको तुम्हारे प्यार कि है कद्र तक नहीं ,
उसको भला ये प्यार जता क्यूँ रहे हों तुम |
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