तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं ,
कि खुद में मस्त रहती हूँ बहुत अब तन गयी हूँ मैं|
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मैं पहले तेरी खातिर टूट कर हर दम बिखरती थी ,
कि अब पत्थर सरीखी ठोस देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मुझे इतना रुलाया है तेरी यादों ने ऐ साहिब ,
कि अपने आंसुओं कि बाढ़ में ही सन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मै लैला हीर शीरी कि तरह का जज्बा रखती थी ,
तेरी ख्वाहिश पे दुनिया कि तरह कि बन गयी हूँ मैं
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
पहले बस तेरी ही खातिर था जीना और मरना भी ,
मगर अब दोस्त दुनिया भर कि देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
पहले बस तेरी ही खातिर था जीना और मरना भी ,
मगर अब दोस्त दुनिया भर कि देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
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