Wednesday 15 August 2012

दिल में है विश्वास नहीं

अब दिल में है विश्वास नहीं ,
जीने की कोई चाह नहीं ,
सब झूठे और मक्कार मिले ,
क्यूँ इस दुनिया में प्यार नहीं |
हमने गंगा बन कर सबके ही पापों का संघार किया ,
हमने भोले बन कर देखो हर बार सदा विषपान किया ,
जिसको चाहा दिल से चाहा बस एक गुनाह यही था पर ,
इस एक समर्पण पर मुझको क्यूँ साथ तेरा वरदान नहीं |
अब दिल में है विश्वास नहीं ,
जीने की कोई चाह नहीं ,
सब झूठे और मक्कार मिले ,
क्यूँ इस दुनिया में प्यार नहीं |

प्यार की शुरुआत

फिर हमसे एक गुनाह की शुरुआत हो गयी ,
सोचा नहीं समझा नहीं ये बात हो गयी |
कैसे तुम्हे समझाएं ये कैसे ये बताएं ,
हमने जलाये दीप फिर भी रात हो गयी |
वरदान में तो हमको मिली थी बड़ी खुशियाँ ,
फिर भी न जाने कैसे ये बरसात हो गयी |
हर बार की तरह है उसी राह पर हमदम ,
जिस राह पे काँटों से थी पहचान हो गयी |
जो हमको मिले थे हमारे दोस्त बन के वो ,
अपने नहीं थे बात सरेआम हो गयी |
फिर से करी रोशन है जिसने जीने की शमाँ ,
उस शख्स से फिर प्यार की शुरुआत हो गयी |

तरफदारी

Monday 13 August 2012

फिर प्रणय की बात होगी|

फिर प्रणय की बात होगी,
रात बीती है बहुत दिन बाद फ़िर है प्रात आई,
और जीवन ने खुशी से फिर करी है यूँ सगाई ,
झूठ सारे खो गए है, सत्य ने अवाज़ दी है,
मौन मुखरित हो रहा हैं, प्रीत ने बरसात की है ,
आज फिर इस नव घड़ी में इक नवल मुसकान होगी,
फिर प्रणय की बात होगी|

तुम्हे आना हो आ जाओ

सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ ,
अकेले लड़ रहे हैं जिंदगी से ये समझ जाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
बहुत नादानियाँ की है बहुत तुमको सताया है ,
अगर जो मानते हो हमको अपना माफ कर जाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
तुम्हारे थे बहुत कुछ हम , हमारे थे बहुत कुछ तुम ,
अगर ये याद हो तुमको तो वापस लौट कर आओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
समझ आती नहीं हमको हमारे दिल की मजबूरी ,
अगर बिन बोले तुम समझो तो हमको भी ये समझाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
ये दुनिया है बड़ी संगदिल बड़ी झूठी बड़ी मक्कार ,
हमें दुनिया के अच्छे रुख को तुम न बतलाओ |
                सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |

Saturday 11 August 2012

परिचय हुआ है |

आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
मैं भटक कर आयी दुनिया देख ली सारी दिशाएं ,
पर  सकल जग में मिली बस वेदनाएं वेदनाएं ,
टूट कर बिखरी बहुत जब दर्द ने चीत्कार मारी ,
कोई न था साथ मेरे थी तनिक संवेदनाएं |
फिर अकेली बेसहारा ढूँढती कोई किनारा 
प्रश्न खुद से कर रही थी तब मिला मुझको सहारा ,
आज फिर मेरा प्रिये से प्रेमवश परिणय हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
जब किया विश्वास दुनिया पर मिला बस झूठ मुझको ,
प्रेम से परिणय किया तो फिर मिला रणछेत्र मुझको ,
काम , माया , क्रोध के मुझको मिले लाखों पुजारी ,
पर मिला न संत कोई देख ली दुनिया तिहारी ,
आज फिर एक बार सुन शिव ,सत्य का दर्शन हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
स्वांस  टूटी आस टूटी , हर मनोरथ चाह रूठी ,
प्रेम की हर डोर टूटी ,तिमिर में हर रात डूबी ,
अश्रु फूटे , अधर रूठे , मौन से संगम हुआ था ,
जब लगा था तुम नहीं प्रिय खुद पे ही कुछ भ्रम हुआ था ,
आज तुम जब साथ फिर से ईश का वंदन हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |

सत्य से परिचय हुआ है

आज दिल हल्का हुआ है ,
मान कर सबी गलतियां ,
फिर  सत्य से परिचय हुआ है |

कल तलक हम चल रहे थे ,
भिन्न  पर विश्वास करके,
और  खुद को छल रहे थे ,
अनृत का सम्मान करके,
मधु  सरीखी जिंदागी में ,
गरळ का संचन हुआ है |
                     सत्य से परिचय हुआ है |
दंभ उसको है बहुत , 
वो बन गगनचर उड़ रहा है |
छोड़ कर सारे अनुग्रह ,
राह अपनी चल रहा है ,
इसलिए वह स्वयं ,
अपने आप का दुश्मन हुआ है |
                    सत्य से परिचय हुआ है |
                   



Tuesday 7 August 2012



न होता

चंद बातें




Friday 3 August 2012

चार चार पंक्तियाँ

1

Saturday 28 July 2012

मुद्दत बाद

मुद्दत बाद दुआ को मेरे हाँथ उठे थे ,
मुद्दत बाद मेरे सर पर एक हाँथ आया था |

मुद्दत बाद हँसे थे मेरे सम्पुट पट भी ,
मुद्दत बाद खुशी का आँसू आँख आया था |
मुद्दत बाद तमन्नाओं ने फिर करवट बदली थी ,
मुद्दत बाद किसी का चेहरा याद आया था,
मुद्दत बाद ह्रदय मेरा जीना सीखा था ,
मुद्दत बाद किसी ने उसको तडपाया था|
मुद्दत  बाद दौड़ कर छू लूं चाँद लगा था ,
मुद्दत बाद ह्रदय कुसमित हों मदमाया था ,
मुद्दत बाद किसी के स्वर की बारिश से फिर ,
ह्रदय मेरा कुछ सकुचाया कुछ शरमाया था |
फिर मुद्दत के बाद वही एहसास मिला था ,
धोखों पर धोखों का मुझको त्रास मिला था ,
तुम शिव को अपना कहती हों तो लो झेलो ,
गरल मुझे हर बार सदा वरदान मिला था |




कहेगा क्या कि उसके पास कहने को नहीं कुछ भी ,
मोहब्बत झूठ थी उसक

रुकता है नहीं कैसे ?

फलों से लद गया है वो तो झुकता है नहीं कैसे ?
नदी बन कर जो बहता है वो रुकता है नहीं कैसे ?
जो कहता था मेरे बिन जी नहीं पायेगा एक भी पल 
वो मुझको खो के भी जिंदा भला है आज तक कैसे ?
                                                     रुकता है नहीं कैसे ?
वफाएं मेरे हिस्से थी तो आँसू भी हमारे थे ,
मेरे दिल में जो रहता था नयन से बह गया कैसे ?
                                                     रुकता है नहीं कैसे ?
"समंदर पीर का अंदर है फिर भी रो नहीं सकता ",
जो गाता था ये धुन रो कर वो तनहा हों गया कैसे ?
                                                     रुकता है नहीं कैसे ?
सितम पर वो सितम हम पर किया करते थे लेकिन फिर ,
भरम उनकी मोहब्बत का ह्रदय में रह गया कैसे ?
                                                     रुकता है नहीं कैसे ?

Friday 27 July 2012

बड़ी पाकीज़की से उनके हुए थे हम तो ,

ऊंचा स्थान

कर रही हूँ कोशिश ,
अपने मृत ह्रदय में प्राण भरने की ,
सांसों  को पुनः जीवन देने की ,
और पुनः तैयार कर रही हूँ
मस्तिष्क के विचारों में पड़े
कुछ मौन विचारों को
शब्द देने की |
और दूसरी ओर तुम
फिर कर रहे हों तैयारी ,
ह्रदय को मत्स्य मान भेदने की  |
क्यूँ तुम बार बार मुझे
खत्म करने का प्रयत्न करते हों ,
क्या बस इसलिए ,
की मैं जानती हूँ ,
तम्हारे सभी भेद ,
तुम्हे बाहर से तो सभी ने देखा ,
पर अंदर से कोई ना जान सका |
कभी मुझे सिया कह
तुमने खुद को राम का दर्जा दिया ,
तो कभी राधा कह
खुद को कृष्ण का मान ,
कभी लक्ष्मी कह खुद को नारायण बना लिया ,
तो कभी शक्ति कह
खुद महादेव बन गए ,
पर बार बार तुम्हारा वो मुझे मान देना
वास्तव में 
खुद को ऊंचा स्थान देना था |



साथ

सांसें कब थी साथ हमारे
बस तब तक प्रिय
जब तक तुम थे साथ हमारे ,
अब तो बस  पिंजर है मेरा
आत्मा तो आज़ाद हुयी है ,
हाँ रहने को साथ तुम्हारे |

प्रश्न कैसे ?

विहंगम दर्द कि गंगा न जाने आयी है कैसे ?
सुनामी सी हमारे दिल पे जाने छाई है कैसे ?
सभी को अपना समझा था पराया था नहीं कोई ,
तो तुझमे दुश्मनी की ये झलक फिर आयी है कैसे ?
समंदर  दर्द का अंदर भरा है कैसे कुछ बोलें ,
कि अपनो में भी गैरों सी हरकत आयी है कैसे ?
सभी कुछ पाने कि चाहत में खो कर सब वो बैठा है ,
ना जाने उसमे चाहत कि ललक ये आयी है कैसे ?
कि दो नावों पे रखो पैर मत मिल पायेगा ना कुछ ,
कहावत ये पुरानी उसको अब समझाएं हम कैसे ?
बहुत ऊंचाइयों पर भी नहीं जिया जाता नहीं है दोस्त ,
उसे सीमाओं का मतलब भला बतलाएं अब कैसे ?

उनको ही पूजा किये

लोग  अपना बन के हमको यूँ  दगा देने लगे  , 
और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
बंद दरवाज़े दिलो के कर के जब बैठे सभी ,
हमने दिल की सांकलों के सारे ताले तज दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
वो तो अपनों का भी अपना हों नहीं पाया मगर ,
गैर के गम में हमारे दिल ने आँसू खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
 कल तलक जो कहता था कि ज़िंदगी उसकी हैं हम ,
आज गैरों के शहर में वो ही खुद को खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
 वक्त रहते जो परिंदे लौट कर आयी नहीं ,
नीड़ अपने उन परिंदों ने सदा को खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
फिर खुदा भी उनकी हसरत के महल का क्या करे ,
नीव के पत्थर ही कमज़ोर जिसने बो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |

मौन सा है छा गया

क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया ,
वो बहुत रूठा है हमसे , गैर उसको भा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
हमने तो अपने खुदा पर छोड़ दी कश्ती कभी ,
अपने हिस्से के गुनाहों कि सज़ा वो पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
वक्त रहते जो समझ लेगा स्वयं की गलतियां ,
बस वही मंझधार में फिर से किनारा पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
मैंने जिसको हद से ज्यादा प्यार से देखा कभी ,
मैं उसी में अपने शिव का बिम्ब देखो पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
उसने धोखों पर दिए हर बार हैं धोखे हमें ,
इसलिए वो आज हर रिश्ते से धोखा खा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
लौट कर आता है अपना ही किया खुद सामने ,
मेरी आँखों कि नमी से इसलिए घबरा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
पूछती रह जायेंगी सदियाँ ये सदियों तक उसे ,
किन गुनाहों की सज़ा वो उम्र भर तक पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|

Sunday 22 July 2012

गंगा

मैं गंगा हूँ मुझे अपनी शरण में नाथ तुम ले लो ,
जटाओं में संभालो तुम हमें तुम साथ में ले लो ,
मुझे वरदान दो मैं त्रास दुनिया के हरूँ सारे ,
मुझे  अपना बना कर तुम गरल सहने का गुण दे दो |





दोस्ती और प्यार

किसी ने अब तलक मेरे लिए कविता नहीं लिखी ,
जो लिखी है सनम तुमने तो अब बोलो कि क्यूँ लिखी ,
किया क्या जुर्म है हमने जो तुमने दोस्त ऐ मेरे
कफ़न पर दोस्ती के प्यार कि ये इल्तिजा लिखी |

Wednesday 4 July 2012

अटक लग जाती है हर काम पर मेरे ना जाने क्यूँ ?
बड़ी शिद्दत से करता हूँ मगर मैं काम हर अपना |

तीर्थ धाम

हर नया नाम मुझे तेरे नाम जैसा लगा ,
और कलयुग में मुझे तू ही राम जैसा लगा |

रास जो खेलें मुझे ऐसे बहुत लोग मिले ,
पर मुझे एक तू ही मेरे श्याम जैसा लगा |
घूम आये है जहाँ के सभी गांवों और शहर ,
पर मुझे तेरा ह्रदय तीर्थ धाम जैसा लगा |

Tuesday 3 July 2012

हाँथ ज़माने वाले

अख्ज़ बन कर ना मिल ऐ रिश्ते बनाने वाले ,
अज़ल तक रहते परेशान है ये करने वाले |
ये अजब बात है  आइना भी उनका ना हुआ ,
जो रहे रोज रूप अपना बदलने वाले |
ये तो आगाज़ है अंजामे सफर क्या होगा ,
बस यही सोचते है राह पे चलने वाले |
वो तो आशुफ्ता मेरे पास आके बैठ गया ,
बस इसी आस में कि हम हैं बचाने वाले |
कौन  कहता है आसमानी फ़रिश्ते हैं वो ,
वो तो हमको हैं सरेआम सताने वाले |
कैसे बतलाएं किया हमपे सितम किस तरह ,
जो इबादत में उठे हाँथ ज़माने वाले |


अख्ज़= पकड़नेवाला, लेनेवाला, छीनने वाला, लोभी
अज़ल= अनन्तकाल, सनातनत्व, नित्यता
आशुफ़्ता= बौख़लाया हुआ, घबराया हुआ, भ्रमित

जानते हैं ये |

इन्हें समझाइये अपने तो बोलेंगे ही बोलेंगे ,
मगर ये इनपे है कि किसको अपना मानते हैं ये |
अगर बेबात ही इल्ज़ाम लगाते रहेंगे दोस्त  ,
तो हम भी टूट जायेंगे ये भी जानते हैं ये |
अकेले में भी रोयेंगे इन्ही के सीने से लगकर ,
मगर मेरा कहा सब झूठ अब तो जानते हैं ये |
फरेबी कहते हैं हमको  ज़रा कुछ सोच कर बोलें ,
कि उनकी राह में कांटे नहीं अब मानते हैं ये |
हमारे हाँथ के ज़ख्मो से टपका है लहू दिल का ,
कि हर कतरे पे उनका नाम है ये जानते हैं ये |
सोचती हूँ कुछ लिखूं
पर
पहले कागज का इनकार  ,
फिर  कलम का इनकार ,
और अंततः  ह्रदय का इनकार ,
ह्रदय  ने कहा
नहीं लिखना कुछ भी
क्यूँकि तुम लिखोगी
तो हर
मेरे भाव फिर कागज पर उतारोगी ,
और उन्हें कमज़ोर कर दोगी ,
पर वो नहीं जानता
कि अब कभी ह्रदय अपने भाव कहेंगे ही
बड़े साइंसदानो ने कहा कि ढूंढ डाला है ,
खुदा का एक कतरा मिल गया है आके पहचानो

Monday 2 July 2012

जाने क्यूँ एक एक पल मुझको
बरसों जैसा अब लगता है ,
सीधा सदा सच्चा भी अब ,
दुनिया जैसा क्यूँ लगता है |
रूप का दर्प पहले निहारा करो ,
फिर मुझे प्रियतमा तुम पुकारा करो ,
दाल रोटी कि मुझको ज़रूरत नहीं ,
बस मुझे प्यार से तुम सराहा करो|

Wednesday 27 June 2012

रहेंगे हम सुखी कैसे ?

तुम्हारे ख्वाब टूटेंगे तो मेरी रात शुभ कैसे
अगर हों आँख तेरी नाम तो मेरी आँख चुप कैसे
भले हम फेस बुक पर मित्र हों ऐ मित्र दुनिया के
अगर तुम दुःख में होगे तो रहेंगे हम सुखी कैसे ?

Tuesday 26 June 2012

कल बहुत रोई थी मरते हुए उसकी आँखें |
अपना सब कुछ तुम्ही को उसने मान रखा था ,
साँस में दिल में धडकनों में बसा रखा था ,
अपने ईमान से तेरे लिए ही भटकी थी ,
बस तेरी ही खुशी के लिए तरसी थी

Sunday 24 June 2012

तुम्हारी मेहरबानी है

मै जो करता हूँ वो अब तो तुम्हारी ही निशानी है ,
भले हों लब कि मुस्काहट या वो आँखों का पानी है ,
मेरी हर बात दुनिया को अदा लगती है लेकिन प्रिय ,
मेरी हर एक आदत बस तुम्हारी मेहरबानी है |

समर्पण

समर्पण आज कल द्वापर कि रचनाओं में मिलता है ,
जहाँ राधा पुकारे तो किशन घर से निकलता है ,
तेरी आँखों में छिप कर रह गए थे चंद जो आँसू ,
उन्हें मोती समझने वाला मन अब तो न मिलता है |

उम्र

अब तो हर गम ने हंसाया है हमें ,
आंसुओं कि भी उम्र होती है |

कुमार विश्वास जी के लिए |

कलरव जन्मा सूनेपन से , अभावों में ही भाव जगे ,
पीड़ा ने हँसाना सिखलाया , फूलों के ही दिल में घाव मिले ,
सरिताओं ने बह कर मुझको आगे बढ़ाना सिखलाया है ,
शैलों पर घन घन घिर मेघों ने राग मल्हार सुनाया है ,
जब दर्द भरी मधुशाला है तो हाला खाली क्यूँ होगी ,
वेदना ह्रदय में छुपी अगर तो आँखें खाली क्यूँ होंगी ,
तन मन तो खुद ही डूबा है , हर दर्द हमें पीना होगा ,
"विश्वास" सुनो मैं कहती हूँ , मरते दम तक जीना होगा|




ऊपर  कि कुछ पंक्तियाँ श्री कुमार विश्वास जी कि निम्न पंक्तियों से जन्मी हैं :-

"कलरव ने सूनापन सौंपा ,मुझको अभाव से भाव मिले,
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले,
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना,
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना,
पीडा की इस मधुशाला में,आँसू की खारी हाला में,
तन-मन जो आज डुबो देगा,वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है,तब तक मुझको जीना होगा ....."

Saturday 23 June 2012

आग लगानी होगी |

नयी इबारत लिखनी है तो स्याह कहीं से लानी होगी ,
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |

आम लोग तो उठते खाते सोते हैं और चल देते हैं ,
पर तुझको इन आम जनो में फिर से क्रांति जगानी होगी |
                               और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
गाँधी बाबा कि लाठी और वीर भगत सिंह कि क़ुरबानी ,
नवयुवकों को हर पल निस दिन तुझको याद दिलानी होगी |
                               और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
अन्ना , बाबा रामदेव सब जूझ रहे है संरचना से ,
ऐसे में आगे बढ़ कर तुझको भी ज्योत जलानी होगी |
                               और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
खतरे में हैं भारत माता ,जीवन संकट आन पड़ा है ,
ऐसे में अपनी मैया कि तुझको आन बचानी होगी |
                               और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
मर्यादा पुरुषोत्तम तो अब कोई नहीं जन्मेगा लेकिन ,
हर बच्चे में राम कृष्ण कि आत्मा तुझे मिलानी होगी |
                         
                               और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |

Friday 22 June 2012

तुम तो मैं हूँ

कितनी आसानी से
त्याग कर दिया आपने अपनी
शिवा को |
कैसे इतनी शक्ति है आपमें
कि कल तक जिसे ,
अपने सीने से लगा कर रखा ,
जिसके मान को अपना समझा ,
वामांगी बनाया था
कहा  था सदा धारण करूँगा तुम्हे
अपने ह्रदय में
उसे  एक पल में त्यागने कि .......
चाहिए हमें भी गुरु दीच्छा
कि जी सकें हम
आपके बिन |
पर कैसे
स्वांस में आप ,
ह्रदय में आप,
मन में आप,
मस्तिष्क में आप ,
हांथो में आज भी है आपका हाँथ ,
और जीवन को है आज भी ये विश्वास,
कि भूले नहीं हों आप हमें ,
हर पल याद आते होंगे वो पल
जो साथ गुज़ारे थे हमने,
किसी  को हों न हों 
हमें विश्वास है ,
तुम्हारे होने का ,
क्यूंकि अब तुम तुम नहीं 
तुम तो मैं हूँ |

Thursday 21 June 2012

ये शिव पर है विश्वास मेरा

एक बार पलट कर देखो तो तुम बिन कैसा है हाल मेरा ,
जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार  मेरा|

तुम थे तो घंटों मैं खुद को आइना दिखाया करती थी ,
तुम थे तो राधा मीरा बन बस तुम्हे बुलाया  करती थी ,
तुम थे तो अपने नयनों में बस तुम्हे सजाया करती थी ,
तुम थे तो रति बन जाती थी और तुम्हे लुभाया करती थी ,
अब तुम बिन सूनी है आँखें तुम बिन बेकल है हाल मेरा ,
                                         जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार मेरा|

वो रातें तुमको याद हैं क्या जो साथ बिताई हैं हमने ,
तेरे हांथों पर सर रख कर तुझे नींद दिलाई है हमने ,
क्या सीने पर तुझको मेरे सर का आभास नहीं होता ,
या याद नहीं आता तुझको, तुझसे लग कर मेरा रोना ,
मैं तेरी हूँ और तेरी ही मरते दम तक कहलाऊंगी ,
शायद कलयुग में जन्मी हूँ पर सतयुग कि कहलाऊंगी ,
आना होगा फिर लौट तुम्हे ये शिव पर है विश्वास मेरा ,
                                         जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार मेरा|


तुम्हे जी रही हूँ

आज तुम्हारे 
दोस्त से बात कर यूँ लगा 
जैसे वापस पा लिया हों मैंने तुम्हे 
और तुम्हारा सानिध्य ,
तुमने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी से कहूँ 
तुम्हारी हूँ मैं 
जैसे सती शिव की |
नहीं रहना चाहती थी राधा बन कर 
तभी उस दिन
शिव के सानिध्य में 
अपनी खाली मांग में भर लिया था 
तुम्हारे नाम का सिन्दूर ,
और  तुमने भी स्वीकृति दी थी 
वो काले मोतियों वाला धागा मेरे गले में पहना कर |
तुमने ही तो कहा था तुम मेरे हों और मेरे रहोगे सदा 
चाहे दुनिया कुछ भी कहे |
और मैंने भी तुम्हारी बातों पर 
विश्वास कर 
मान लिया था अपना शिव |
सबने समझाया था 
द्वापर  में नहीं कलयुग में जन्मी हों
यहाँ कोई कान्हा नहीं 
और शिव औघड़ सन्यासी ,
उस जैसा कहाँ जन्मेगा अब कोई 
जो तुझे सती मान 
उस सिन्दूर का मान रखेगा |
कितना लड़ी थी मैं तुमसे 
और तुम भी बिफर पड़े थे हम पर ,
छोड़ दिया था हमें विश्वास और अविश्वास के दोराहे पर ,
कह दिया था एक को चुन लो 
या दुनिया को और या अपने इस शिव को|
और छोड़ सकल संसार 
रिश्ते  नाते मैं तो तेरे ही पीछे चल पड़ी थी |
आज कहाँ हों तुम जब मैं निर्विकार 
उसी भाव से रोज देख रही हूँ तुम्हारा इंतज़ार ,
ढूंढ रहीं हूँ तुम्हे यहाँ बैठ कर जनपथ की सड़कों पर ,
और जब थक जाती हूँ अकेले में 
पूरी रात रो कर ,
तब तेरे ही किसी अपने में तेरी छाया ढूंढ 
खुश हों जाती हूँ |

मेरा सुख तुम्हे खोजने में ही है 
शायद तुम ये समझ नहीं सके 
और आज मैं खुद में 
हर पल बस तुम्हे जी रही हूँ |

Monday 18 June 2012

किसी ने हमसे बोला है कि तुम अच्छे नहीं हों दोस्त
किसी की भावनाओं का नहीं है तुमको कोई मोल ,
तुम इतना दर्द दे दोगे कि तड़पेंगे सदा ही हम ,
कि तुम बेदर्द हों और प्यार मेरा है बड़ा अनमोल |
उनसे रोज कह्तऐ थे 
तुम्हारे बिन जी ना सकेंगे 
और आज उनके ही इंतज़ार में 
जी रहे हैं हम |
अदा है ये हमारी कि वफादारी रही हममें ,
नहीं तो आज कल इमान मिलता ही कहाँ पर है,
कि उसके ही भले के वास्ते हम खाक में हैं अब ,
मगर जाने वो मेरे दोस्त दुनिया में कहाँ अब हैं |
वो खुद है जानता मेरी वफाएं कम नहीं होंगी ,
मेरे दीवानेपन की भी सदाएं कम नहीं होंगी ,
उसे लौटा के लायेंगी हमारे दिल कि फरियादें ,
उसी के साथ मिटने की मुरादें कम नहीं होंगी |

मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी

मुझे लगा था कि मैं 
तेरे ह्रदय कि आवयश्कता थी ,
धडकन  कि तरह ,
जिसके आभाव में ह्रदय निर्जीव है|
मुझे लगा था मैं तेरी 
आँखों कि ज़रूरत थी
उस काले गोले कि तरह 
जो  पुतलियों ले बीच खेल कर 
तुझे  स्वप्न लोक कि सैर कराता था |
मुझे लगा तेरे हांथों को मेरे हांथो की 
अपेच्छा थी ,
कहा था तुमने कि ,
बस मैं तुम्हारा हाँथ थाम लूँ 
फिर तुम अकेले नहीं रह जाओगे 
याद है तुमने एक रोज मिन्नत कि थी 
कि तूम कुछ नहीं बिन हमारे 
खा ली थी अपने माँ बाबा कि कसम ,
की कभी नहीं छोडोगे 
हमारा साथ ,
हमारा हाँथ ,
पर आज जब तुम  मेरी अवहेलना कर 
मेरे प्यार को अनसुना कर 
चले गए ,
तब भी जाने किस कारण 
भय युक्त हूँ मैं 
कि क्या होगा तुम्हारे हांथों का जिसे मेरे हांथो कि ज़रूरत थी ,
क्या होगा तुम्हारी सांसों का जिसने मेरे साथ सांसे ली थी ,
क्या होगा तुम्हारी आँखों का जिसमे कभी तुमने मेरे स्वप्न संजोये थे ,
क्या होगा उस ह्रदय का जिसके आँगन में हम सोये थे ,
और क्या होगा मेरे उन माँ बाबा का 
जिनकी झूठी कसम खा ,
तुम चले गए मुझे तज कर |
और आज किसी और ने नहीं 
तुम्हारे कर्मों ने ही 
एहसास कराया है हमें ,
मैं  तो बस भूख थी 
जिसने तेरे अहम का पेट भरा था ,
मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी 
मैं  कभी तेरे मन कि वीणा का तार नहीं थी |
अदा है ये हमारी कि वफादारी रही हममें ,
नहीं तो आज कल इमान मिलता ही कहाँ पर है,
कि उसके ही भले के वास्ते हम खाक में हैं अब ,
मगर जाने वो मेरे दोस्त दुनिया में कहाँ अब हैं |
कि जिसने प्यार से देखा था उसको शक हमी पर है ,
कि उसकी उंगलियां कि ताब का रुख भी हमी पर है ,
उसे मारा है हमने रोज वो कहता है हमसे ये ,
मगर उसके इरादों का वो खंजर भी हमी पर है |

सिर्फ मेरे तुम प्रिये

अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये |

एक दिन बोला था तुमने छोड़ कर न जाओगे ,
चाहे हम कुछ भी करें तुम बस मेरे कहलाओगे ,
अब  कहाँ वो शब्द जिन पर था तुझे विश्वास इतना , 
गर न पूरा करने सके तो झूठे तुम  कहलाओगे ,

बस तुम्हारे एक कथन पर हम तो मिटते हैं प्रिये ,
                                      अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये | 

ईश  का वरदान समझा तुमको जीवन के लिए ,
मैंने तन  मन प्राण  समझा तुझको जीवन के लिए ,
और तुम ही हमको ठग कर स्वांस मेरी ले गए ,
मांग लेते गर तो सब कुछ था मेरा तेरे लिए ,

एक बस तेरे कथन पर  प्राण खुद हरते प्रिये ,
                                      अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये |

Sunday 17 June 2012

मौन के शब्द

मौन के भी आज मैंने शब्द सुने हैं ,
और उसके साथ नए ख्वाब बुने हैं|

बोलता तो कुछ नहीं बस साथ चलता है ,
ज़िंदगी में ऐसे फसाने न सुने हैं |

आज पहली बार मैंने शख्स वो देखा ,
जिसने खुद ही दर्द के पैमाने चुने हैं |

कौन कहता है कि फफक कर वो रोया था ,
जिसके पैरों ने हमारे ज़ख्म चुने हैं |

उसकी  मुस्कुराहटों और उसकी अदा में , 
ज़ख्म ले के प्यार के अफ़साने बुने हैं |

कोई

इश्क बस दर्द है इसकी दवा नहीं है कोई
आँख सोयी नहीं है जब से मिला है कोई |
वो तो तार्रुफ को ताल्लुकात समझ बैठे हैं ,
इतनी जल्दी नहीं दिल से मेरे जुडता है कोई |
मुद्दतों साथ रहे फिर भी वो समझे न हमें ,
उनके  अतिरिक्त मेरे दिल को सताता न कोई |
आज हम दूर हैं उनसे मगर यकीं  है ये,
उनको भी मेरी कभी याद दिलाता है कोई |
ज़िंदगी पर तो वर्के चांदनी लगाई मगर ,
दिल के ज़ख्मो को हमें आके दिखता है कोई |
लौट आ मीत मेरे तेरे बिन अकेले हैं ,
अब तो तेरी ही झलक मुझको दिखता है कोई |
क्यों यकीं कर न सका हम तो तेरे बन के रहे ,
क्यूँ सवालों के ये जंजाल बनाता है कोई |
वक्त रहते तू अगर लौट के आया न इधर ,
तो मेरी मौत पे भी फूल चढ़ायेगा कोई |
बोल कर देख लिया प्यार दे के देख लिया ,
अब मेरे मौन के भी शब्द सुनाएगा कोई |

प्रेम

मुरली भी राधा से जल गयी
बोल उठी ये बोल ,
मैं तो संवारे के  सम्पुट पर
लग कर हुयी बेमोल
पर राधा का मोल ये जग कैसे नापेगा ,
मन लग कर कान्हा के 

वो तो हों गयी है अनमोल |

बस तुम जैसे लोगों ने उसको मारा है ,

दूसरों का हित

आज तुम्ही ने मार दिया 
उसकी  उन अच्छाइयोंको
जिन्हें देख
तुम उसके करीब आये थे ,
जिनके कारण तुमने ,
उसे अपनी अर्धांग्नी स्वीकारा था ,
वो तो सदा से ऐसी ही थी ,
सदा लोगों के हित के लिए खुद को जलाती,
जब जब वो तुम्हारे लिए जली,
तुम्हारे लिए भली बनी 
तब तब तुमने उसे सराहा ,
उसे ईश्वर कि अनुपम कृति बताया 
जो तुम्हे किस्मत से मिली थी |
पर आज 
उसे  उसकी भावनाओं पर अंकुश 
लगाने को बोला है तुमने ,
कैसे जियेगी 
वो अपने 
अर्थ को खो कर 
जो सदा से 
दूसरों का हित
करने से जुडा था |
जी लेने दो उसे उसकी खुशी
जो सत्यम शिवम सुन्दरम ,
और ओम् नमः शिवाये ,
मंत्रो जैसी है 
कर लेने दो उसे उसके मन का ,
पूर्ण कर लेने दो उसे उसका जीवन 
जिस हेतु वो आयी है 
कर लेने दो खुद को खत्म कर 
उसे दूसरों का हित|

सती का आत्मदाह

आज वो खत्म हुयी है ,
जो दुनिया कि बुराइयों के बाद भी
उसी रास्ते पर थी
जो उसे उसके नीलकंठ ने दिखाया था ,
विष को अपने अंदर धार कर
जग का कल्याण करने कि राह ,
और उसी राह पर चल रही थी
तब से,
जब  माँ ने पहली पायल पैरों में डाली थी ,
आज  रुनझुन करते
उन्ही पायलों के साथ
माँ कि नयी सारी ,
काम वाली बाई को दे आयी थी वो |
बहुत डाट खाई थी ,
पर शिव कि सती
को शिव के पदचिन्हों पर चलने से
कौन रोक पाया है ?
तीन से तीस कि होते तक
जब भी ईश्वर के सन्मुख कुछ माँगा
किसी न किसी के लिए था
दूसरों के भले में ही अपना भला
चाहा था उसने ,
इसीलिए कोई  बाप बन
कोई भाई बन ,
कोई सखी बन ,
कोई प्रियतम बन
लूट रहा था उसे |
स्नेह, करुना, दया ,
वैराग , त्याग ,
ये ही  थे उसके जीवन के प्रतिमान ,
इन्ही  के कारण जीवन के हर स्तर पर ठगी गयी ,
क्या गलत थे उसके प्रतिमान
या लोगों को कद्र नहीं थी ,
उन प्रतिमानों की |
बहुत कोशिश की सती को शिव से भिन्न करने की ,
पर भिन्न करने कि इस
कोशिश में
आज सती ने वैसे ही आत्मदाह कर लिया ,
जैसे
दक्ष के यज्ञ कुंड में |

Friday 15 June 2012

उसने चाहा था हवाओं का रुख बदल जाये ,



आँखों से बयां होते हैं

रोज जीते हैं और रोज फ़ना  होते हैं ,
हम तो बस वक्त हैं , हर पल ही नया होते हैं |
तुम जो कह दो तो रुकें अपनी बदल लें हस्ती ,
वरना अफसाने मेरे सुर्ख सदा होते हैं |
कोई रास्ता नहीं अपना , कोई मंजिल नहीं अपनी ,
हम तो बस वो है जो ख्वाबों में अदा होते हैं |
तेरी हर एक खुशी हमको मुकम्मल कर दे ,
वरना किस्से मेरे आँखों से बयां होते हैं |

Thursday 14 June 2012

उस तरह कि बन गयी हूँ मैं

तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं ,
कि खुद में मस्त रहती हूँ बहुत अब तन गयी हूँ मैं|
                            
                                  तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|

मैं पहले तेरी खातिर टूट कर हर दम बिखरती थी ,
कि अब पत्थर सरीखी ठोस देखो बन गयी हूँ मैं |

                                  तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|

मुझे इतना रुलाया है तेरी यादों ने ऐ साहिब ,
कि अपने आंसुओं कि बाढ़ में ही सन गयी हूँ मैं |

                                  तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|

 मै  लैला हीर शीरी कि तरह का जज्बा रखती थी ,
तेरी ख्वाहिश पे दुनिया कि तरह कि बन गयी हूँ मैं

                                  तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|

पहले  बस तेरी ही खातिर था जीना और मरना भी ,
मगर अब दोस्त दुनिया भर कि देखो बन गयी हूँ मैं |

                                  तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|



सनम कहना पड़ेगा अब

कठिन राहों में हमको साथ चलना भी पड़ेगा अब ,
कि कितने इम्तिहानों से गुजरना भी पड़ेगा अब|

अगर हों दिल में हसरत ज़िंदगी भर साथ की  तुझको ,
तो ये तू जान ले दुनिया से लड़ना भी पड़ेगा अब |

मोहब्बत बंदगी सी है मोहब्बत कि गुजारिश में ,
शमा बन कर के आंधी से झगड़ना भी पड़ेगा अब |

नहीं दो पल का हमको साथ अब तेरा गंवारा है ,
मेरी परछाईं बन ता उम्र चलना भी पड़ेगा अब |

सियासत  की कहानी प्यार में लागू नहीं होती ,
कि दिल पर मेरे तुझको राज भी करना पड़ेगा अब |

ये वादा कर न मुझको छोड़  के जायेगा तू तन्हा ,
कसम खा कर के ये तुझको सनम कहना पड़ेगा अब |



जीवन

कौन है किसके साथ में किसका किससे मेल ,
जीवन रेलमपेल है चार पलों का खेल ,
चार पलों का खेल कि इसमे कोई न जीते ,
चाहे दिखे कोई भी  कैसा पर अंदर से सब हैं रीते|

जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती

सुबह जब तक तेरी आवाज़ कानों में नहीं पड़ती ,
मुझे ये ज़िंदगी हमदम नहीं है ज़िंदगी लगती |
तू मुझको माफ कर दे मैं तेरी परछाई हूँ मालिक ,
कि तेरे बिन मेरी हस्ती मुझे हस्ती नहीं लगती |
बहुत चाहा है तुझको और पूजा है तुझे मैंने ,
कि  तुझ बिन मंदिरों कि मूर्तियां ईश्वर नहीं लगती |
तू धडकन में तू सांसों में तू पलकों में तू आँखों में ,
कि मुझको मुझमे तू दिखता है , खुद में मैं नहीं दिखती|
जो देखूं आइना तो रो ही पड़ती हैं मेरी आँखें ,
कि अपने जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती|

वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं

लब पर नाम नहीं भी आये तो भी सब पढ़ लेते हैं ,
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |

कैसे छुपाएँ राजे उल्फत कैसे उन्हें बतलाएं ना ,
मेरी हंसी में वो दिखते हैं और आँसू में बहते हैं |
                                लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
भूल गए हैं मुझको मेरे अपने से बेगाना कर ,
अब  तो हम उनके सीने मे धडकन बन कर रहते हैं |
                                लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
दर्द  का क्या है एक न एक दिन खत्म इसे हों जाना है ,
दोस्त है दो पल का ये मेरे प्यार से इसको सहते हैं |
                                लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |

मुझे माफ कर दो

मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे 
अनजाने में भूल हों गयी,
तेरी बातें मान  सकी ना ,
गलती ये अब शूल हों गयी |
जब तक तुम थे साथ 
सदा ये लगा कहाँ जाओगे तज कर , 
सदा  ठिठोली कि थी मैंने ,
हंस कर, रो कर , गा कर , सज कर |
पर इस पल भर कि दूरी ने ,
मुझको ये एहसास कराया ,
तुम बिन कुछ मैं नहीं 
कि जैसे नहीं प्राण बिन कोई काया |
बिन तेरे ऐ प्रियतम मेरे ,
जीवन नगरी धूल हों गयी ,
                                          मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे ,
                                          अनजाने में भूल हों गयी |
मैं तो तेरी ही पगली हूँ ,
तेरी खट्टी तेरी मीठी ,
तुझसे अलग नहीं मैं कुछ भी ,
मैं  बस तेरी सखी सहेली ,
तू ही हर रिश्ते में मेरे ,
तू धडकन तू सांसों में ,
बिन तेरे स्पर्श हमारी ,
काया भी बेनूर हों गयी ,
                                          मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे ,
                                          अनजाने में भूल हों गयी |


बहना किस्मत हई मगर दूर निकलने को नहीं
हम तेरा साथ निभाने के लिए बहते हैं |