क्यूँ इतने दिनों के साथ के बाद
भी समझ नहीं पाए तुम
ह्रदय हमारा|
उन्हें भी कष्ट
नहीं दे सका मेरा ह्रदय ,
जो मुझे ही ठग कर
जीवन के रणछेत्र में अकेला छोड़ गए ,
आज वो भी हैं तुम्हारे मित्रों कि सूची में ,
जो आस्तीन में सांप बन कर
तुम्हे ही ठग रहे थे |
पर कभी भरोसा नहीं किया तुमने
मुझ पर ,
न जाने कौन सा स्वार्थ सिद्ध किया था ,
मैंने तुमसे ,
क्या कभी किसी सांसारिक वस्तु की
अभिलाषा कि थी मैंने |
किसी ने तुमसे कोई वाद्ययंत्र माँगा ,
किसी ने लैपटॉप ,
किसी ने कपड़े मांगे ,
किसी ने कोई इलेक्ट्रोनिक गजेट |
पर मैंने तो बस समय माँगा था ,
साथ माँगा था तुम्हारा ,
दुःख मांगे थे तुम्हारे ,
और यही चाहा था कि तुम्हारे रस्ते के सारे शूल
मेरे पैरों में चुभ जाये ,
गर ये स्वार्थ था
तो मैं स्वार्थी हूँ |
No comments:
Post a Comment