अंतर्नाद
Saturday, 9 June 2012
कि अब तुझसे कभी ऐ दोस्त शायद मिल न पाऊँगा
मगर तुझको कभी भी मैं न अब समझा ये पाऊँगा
कि कोई क्यूँ नहीं है चाहता कि मैं मिलूँ तुझसे
ये साजिश है किसी कि ये तुझे जतला न पाऊँगा |
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