Wednesday, 27 June 2012
Tuesday, 26 June 2012
Sunday, 24 June 2012
तुम्हारी मेहरबानी है
मै जो करता हूँ वो अब तो तुम्हारी ही निशानी है ,
भले हों लब कि मुस्काहट या वो आँखों का पानी है ,
मेरी हर बात दुनिया को अदा लगती है लेकिन प्रिय ,
मेरी हर एक आदत बस तुम्हारी मेहरबानी है |
भले हों लब कि मुस्काहट या वो आँखों का पानी है ,
मेरी हर बात दुनिया को अदा लगती है लेकिन प्रिय ,
मेरी हर एक आदत बस तुम्हारी मेहरबानी है |
समर्पण
समर्पण आज कल द्वापर कि रचनाओं में मिलता है ,
जहाँ राधा पुकारे तो किशन घर से निकलता है ,
तेरी आँखों में छिप कर रह गए थे चंद जो आँसू ,
उन्हें मोती समझने वाला मन अब तो न मिलता है |
जहाँ राधा पुकारे तो किशन घर से निकलता है ,
तेरी आँखों में छिप कर रह गए थे चंद जो आँसू ,
उन्हें मोती समझने वाला मन अब तो न मिलता है |
कुमार विश्वास जी के लिए |
कलरव जन्मा सूनेपन से , अभावों में ही भाव जगे ,
पीड़ा ने हँसाना सिखलाया , फूलों के ही दिल में घाव मिले ,
सरिताओं ने बह कर मुझको आगे बढ़ाना सिखलाया है ,
शैलों पर घन घन घिर मेघों ने राग मल्हार सुनाया है ,
जब दर्द भरी मधुशाला है तो हाला खाली क्यूँ होगी ,
वेदना ह्रदय में छुपी अगर तो आँखें खाली क्यूँ होंगी ,
तन मन तो खुद ही डूबा है , हर दर्द हमें पीना होगा ,
"विश्वास" सुनो मैं कहती हूँ , मरते दम तक जीना होगा|
ऊपर कि कुछ पंक्तियाँ श्री कुमार विश्वास जी कि निम्न पंक्तियों से जन्मी हैं :-
पीड़ा ने हँसाना सिखलाया , फूलों के ही दिल में घाव मिले ,
सरिताओं ने बह कर मुझको आगे बढ़ाना सिखलाया है ,
शैलों पर घन घन घिर मेघों ने राग मल्हार सुनाया है ,
जब दर्द भरी मधुशाला है तो हाला खाली क्यूँ होगी ,
वेदना ह्रदय में छुपी अगर तो आँखें खाली क्यूँ होंगी ,
तन मन तो खुद ही डूबा है , हर दर्द हमें पीना होगा ,
"विश्वास" सुनो मैं कहती हूँ , मरते दम तक जीना होगा|
ऊपर कि कुछ पंक्तियाँ श्री कुमार विश्वास जी कि निम्न पंक्तियों से जन्मी हैं :-
"कलरव ने सूनापन सौंपा ,मुझको अभाव से भाव मिले,
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले,
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना,
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना,
पीडा की इस मधुशाला में,आँसू की खारी हाला में,
तन-मन जो आज डुबो देगा,वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है,तब तक मुझको जीना होगा ....."
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले,
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना,
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना,
पीडा की इस मधुशाला में,आँसू की खारी हाला में,
तन-मन जो आज डुबो देगा,वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है,तब तक मुझको जीना होगा ....."
Saturday, 23 June 2012
आग लगानी होगी |
नयी इबारत लिखनी है तो स्याह कहीं से लानी होगी ,
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
आम लोग तो उठते खाते सोते हैं और चल देते हैं ,
पर तुझको इन आम जनो में फिर से क्रांति जगानी होगी |
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
गाँधी बाबा कि लाठी और वीर भगत सिंह कि क़ुरबानी ,
नवयुवकों को हर पल निस दिन तुझको याद दिलानी होगी |
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
अन्ना , बाबा रामदेव सब जूझ रहे है संरचना से ,
ऐसे में आगे बढ़ कर तुझको भी ज्योत जलानी होगी |
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
खतरे में हैं भारत माता ,जीवन संकट आन पड़ा है ,
ऐसे में अपनी मैया कि तुझको आन बचानी होगी |
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
मर्यादा पुरुषोत्तम तो अब कोई नहीं जन्मेगा लेकिन ,
हर बच्चे में राम कृष्ण कि आत्मा तुझे मिलानी होगी |
और ह्रदय में न बुझ पाए ऐसी आग लगानी होगी |
Friday, 22 June 2012
तुम तो मैं हूँ
कितनी आसानी से
त्याग कर दिया आपने अपनी
शिवा को |
कैसे इतनी शक्ति है आपमें
कि कल तक जिसे ,
अपने सीने से लगा कर रखा ,
जिसके मान को अपना समझा ,
वामांगी बनाया था
कहा था सदा धारण करूँगा तुम्हे
अपने ह्रदय में
उसे एक पल में त्यागने कि .......
चाहिए हमें भी गुरु दीच्छा
कि जी सकें हम
आपके बिन |
पर कैसे
स्वांस में आप ,
ह्रदय में आप,
मन में आप,
मस्तिष्क में आप ,
हांथो में आज भी है आपका हाँथ ,
और जीवन को है आज भी ये विश्वास,
कि भूले नहीं हों आप हमें ,
हर पल याद आते होंगे वो पल
जो साथ गुज़ारे थे हमने,
किसी को हों न हों
हमें विश्वास है ,
तुम्हारे होने का ,
क्यूंकि अब तुम तुम नहीं
तुम तो मैं हूँ |
Thursday, 21 June 2012
ये शिव पर है विश्वास मेरा
एक बार पलट कर देखो तो तुम बिन कैसा है हाल मेरा ,
जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार मेरा|
तुम थे तो घंटों मैं खुद को आइना दिखाया करती थी ,
तुम थे तो राधा मीरा बन बस तुम्हे बुलाया करती थी ,
तुम थे तो अपने नयनों में बस तुम्हे सजाया करती थी ,
तुम थे तो रति बन जाती थी और तुम्हे लुभाया करती थी ,
अब तुम बिन सूनी है आँखें तुम बिन बेकल है हाल मेरा ,
जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार मेरा|
वो रातें तुमको याद हैं क्या जो साथ बिताई हैं हमने ,
तेरे हांथों पर सर रख कर तुझे नींद दिलाई है हमने ,
क्या सीने पर तुझको मेरे सर का आभास नहीं होता ,
या याद नहीं आता तुझको, तुझसे लग कर मेरा रोना ,
मैं तेरी हूँ और तेरी ही मरते दम तक कहलाऊंगी ,
शायद कलयुग में जन्मी हूँ पर सतयुग कि कहलाऊंगी ,
आना होगा फिर लौट तुम्हे ये शिव पर है विश्वास मेरा ,
जीवन जीवन से रूठा है देखो छूटा श्रंगार मेरा|
तुम्हे जी रही हूँ
आज तुम्हारे
दोस्त से बात कर यूँ लगा
जैसे वापस पा लिया हों मैंने तुम्हे
और तुम्हारा सानिध्य ,
तुमने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी से कहूँ
तुम्हारी हूँ मैं
जैसे सती शिव की |
नहीं रहना चाहती थी राधा बन कर
तभी उस दिन
शिव के सानिध्य में
अपनी खाली मांग में भर लिया था
तुम्हारे नाम का सिन्दूर ,
और तुमने भी स्वीकृति दी थी
वो काले मोतियों वाला धागा मेरे गले में पहना कर |
तुमने ही तो कहा था तुम मेरे हों और मेरे रहोगे सदा
चाहे दुनिया कुछ भी कहे |
और मैंने भी तुम्हारी बातों पर
विश्वास कर
मान लिया था अपना शिव |
सबने समझाया था
द्वापर में नहीं कलयुग में जन्मी हों
यहाँ कोई कान्हा नहीं
और शिव औघड़ सन्यासी ,
उस जैसा कहाँ जन्मेगा अब कोई
जो तुझे सती मान
उस सिन्दूर का मान रखेगा |
कितना लड़ी थी मैं तुमसे
और तुम भी बिफर पड़े थे हम पर ,
छोड़ दिया था हमें विश्वास और अविश्वास के दोराहे पर ,
कह दिया था एक को चुन लो
या दुनिया को और या अपने इस शिव को|
और छोड़ सकल संसार
रिश्ते नाते मैं तो तेरे ही पीछे चल पड़ी थी |
आज कहाँ हों तुम जब मैं निर्विकार
उसी भाव से रोज देख रही हूँ तुम्हारा इंतज़ार ,
ढूंढ रहीं हूँ तुम्हे यहाँ बैठ कर जनपथ की सड़कों पर ,
और जब थक जाती हूँ अकेले में
पूरी रात रो कर ,
तब तेरे ही किसी अपने में तेरी छाया ढूंढ
खुश हों जाती हूँ |
मेरा सुख तुम्हे खोजने में ही है
शायद तुम ये समझ नहीं सके
और आज मैं खुद में
हर पल बस तुम्हे जी रही हूँ |
Monday, 18 June 2012
मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी
मुझे लगा था कि मैं
तेरे ह्रदय कि आवयश्कता थी ,
धडकन कि तरह ,
जिसके आभाव में ह्रदय निर्जीव है|
मुझे लगा था मैं तेरी
आँखों कि ज़रूरत थी
उस काले गोले कि तरह
जो पुतलियों ले बीच खेल कर
तुझे स्वप्न लोक कि सैर कराता था |
मुझे लगा तेरे हांथों को मेरे हांथो की
अपेच्छा थी ,
कहा था तुमने कि ,
बस मैं तुम्हारा हाँथ थाम लूँ
फिर तुम अकेले नहीं रह जाओगे
याद है तुमने एक रोज मिन्नत कि थी
कि तूम कुछ नहीं बिन हमारे
खा ली थी अपने माँ बाबा कि कसम ,
की कभी नहीं छोडोगे
हमारा साथ ,
हमारा हाँथ ,
पर आज जब तुम मेरी अवहेलना कर
मेरे प्यार को अनसुना कर
चले गए ,
तब भी जाने किस कारण
भय युक्त हूँ मैं
कि क्या होगा तुम्हारे हांथों का जिसे मेरे हांथो कि ज़रूरत थी ,
क्या होगा तुम्हारी सांसों का जिसने मेरे साथ सांसे ली थी ,
क्या होगा तुम्हारी आँखों का जिसमे कभी तुमने मेरे स्वप्न संजोये थे ,
क्या होगा उस ह्रदय का जिसके आँगन में हम सोये थे ,
और क्या होगा मेरे उन माँ बाबा का
जिनकी झूठी कसम खा ,
तुम चले गए मुझे तज कर |
और आज किसी और ने नहीं
तुम्हारे कर्मों ने ही
एहसास कराया है हमें ,
मैं तो बस भूख थी
जिसने तेरे अहम का पेट भरा था ,
मैं कभी तेरी आत्मा की पुकार नहीं थी
मैं कभी तेरे मन कि वीणा का तार नहीं थी |
सिर्फ मेरे तुम प्रिये
अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये |
एक दिन बोला था तुमने छोड़ कर न जाओगे ,
चाहे हम कुछ भी करें तुम बस मेरे कहलाओगे ,
अब कहाँ वो शब्द जिन पर था तुझे विश्वास इतना ,
गर न पूरा करने सके तो झूठे तुम कहलाओगे ,
बस तुम्हारे एक कथन पर हम तो मिटते हैं प्रिये ,
अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये |
ईश का वरदान समझा तुमको जीवन के लिए ,
मैंने तन मन प्राण समझा तुझको जीवन के लिए ,
और तुम ही हमको ठग कर स्वांस मेरी ले गए ,
मांग लेते गर तो सब कुछ था मेरा तेरे लिए ,
एक बस तेरे कथन पर प्राण खुद हरते प्रिये ,
अब नयन अपलक तुम्हारी राह तकते है प्रिये |
Sunday, 17 June 2012
मौन के शब्द
मौन के भी आज मैंने शब्द सुने हैं ,
और उसके साथ नए ख्वाब बुने हैं|
बोलता तो कुछ नहीं बस साथ चलता है ,
ज़िंदगी में ऐसे फसाने न सुने हैं |
आज पहली बार मैंने शख्स वो देखा ,
जिसने खुद ही दर्द के पैमाने चुने हैं |
कौन कहता है कि फफक कर वो रोया था ,
जिसके पैरों ने हमारे ज़ख्म चुने हैं |
उसकी मुस्कुराहटों और उसकी अदा में ,
ज़ख्म ले के प्यार के अफ़साने बुने हैं |
कोई
इश्क बस दर्द है इसकी दवा नहीं है कोई
आँख सोयी नहीं है जब से मिला है कोई |
आँख सोयी नहीं है जब से मिला है कोई |
वो तो तार्रुफ को ताल्लुकात समझ बैठे हैं ,
इतनी जल्दी नहीं दिल से मेरे जुडता है कोई |
मुद्दतों साथ रहे फिर भी वो समझे न हमें ,
उनके अतिरिक्त मेरे दिल को सताता न कोई |
आज हम दूर हैं उनसे मगर यकीं है ये,
उनको भी मेरी कभी याद दिलाता है कोई |
ज़िंदगी पर तो वर्के चांदनी लगाई मगर ,
दिल के ज़ख्मो को हमें आके दिखता है कोई |
लौट आ मीत मेरे तेरे बिन अकेले हैं ,
अब तो तेरी ही झलक मुझको दिखता है कोई |
क्यों यकीं कर न सका हम तो तेरे बन के रहे ,
क्यूँ सवालों के ये जंजाल बनाता है कोई |
वक्त रहते तू अगर लौट के आया न इधर ,
तो मेरी मौत पे भी फूल चढ़ायेगा कोई |
बोल कर देख लिया प्यार दे के देख लिया ,
अब मेरे मौन के भी शब्द सुनाएगा कोई |
प्रेम
मुरली भी राधा से जल गयी
बोल उठी ये बोल ,
मैं तो संवारे के सम्पुट पर
लग कर हुयी बेमोल
पर राधा का मोल ये जग कैसे नापेगा ,
मन लग कर कान्हा के
वो तो हों गयी है अनमोल |
बोल उठी ये बोल ,
मैं तो संवारे के सम्पुट पर
लग कर हुयी बेमोल
पर राधा का मोल ये जग कैसे नापेगा ,
मन लग कर कान्हा के
वो तो हों गयी है अनमोल |
दूसरों का हित
आज तुम्ही ने मार दिया
उसकी उन अच्छाइयोंको
जिन्हें देख
तुम उसके करीब आये थे ,
जिनके कारण तुमने ,
उसे अपनी अर्धांग्नी स्वीकारा था ,
वो तो सदा से ऐसी ही थी ,
सदा लोगों के हित के लिए खुद को जलाती,
जब जब वो तुम्हारे लिए जली,
तुम्हारे लिए भली बनी
तब तब तुमने उसे सराहा ,
उसे ईश्वर कि अनुपम कृति बताया
जो तुम्हे किस्मत से मिली थी |
पर आज
उसे उसकी भावनाओं पर अंकुश
लगाने को बोला है तुमने ,
कैसे जियेगी
वो अपने
अर्थ को खो कर
जो सदा से
दूसरों का हित
करने से जुडा था |
जी लेने दो उसे उसकी खुशी
जो सत्यम शिवम सुन्दरम ,
और ओम् नमः शिवाये ,
मंत्रो जैसी है
कर लेने दो उसे उसके मन का ,
पूर्ण कर लेने दो उसे उसका जीवन
जिस हेतु वो आयी है
कर लेने दो खुद को खत्म कर
उसे दूसरों का हित|
उसकी उन अच्छाइयोंको
जिन्हें देख
तुम उसके करीब आये थे ,
जिनके कारण तुमने ,
उसे अपनी अर्धांग्नी स्वीकारा था ,
वो तो सदा से ऐसी ही थी ,
सदा लोगों के हित के लिए खुद को जलाती,
जब जब वो तुम्हारे लिए जली,
तुम्हारे लिए भली बनी
तब तब तुमने उसे सराहा ,
उसे ईश्वर कि अनुपम कृति बताया
जो तुम्हे किस्मत से मिली थी |
पर आज
उसे उसकी भावनाओं पर अंकुश
लगाने को बोला है तुमने ,
कैसे जियेगी
वो अपने
अर्थ को खो कर
जो सदा से
दूसरों का हित
करने से जुडा था |
जी लेने दो उसे उसकी खुशी
जो सत्यम शिवम सुन्दरम ,
और ओम् नमः शिवाये ,
मंत्रो जैसी है
कर लेने दो उसे उसके मन का ,
पूर्ण कर लेने दो उसे उसका जीवन
जिस हेतु वो आयी है
कर लेने दो खुद को खत्म कर
उसे दूसरों का हित|
सती का आत्मदाह
आज वो खत्म हुयी है ,
जो दुनिया कि बुराइयों के बाद भी
उसी रास्ते पर थी
जो उसे उसके नीलकंठ ने दिखाया था ,
विष को अपने अंदर धार कर
जग का कल्याण करने कि राह ,
और उसी राह पर चल रही थी
तब से,
जब माँ ने पहली पायल पैरों में डाली थी ,
आज रुनझुन करते
उन्ही पायलों के साथ
माँ कि नयी सारी ,
काम वाली बाई को दे आयी थी वो |
बहुत डाट खाई थी ,
पर शिव कि सती
को शिव के पदचिन्हों पर चलने से
कौन रोक पाया है ?
तीन से तीस कि होते तक
जब भी ईश्वर के सन्मुख कुछ माँगा
किसी न किसी के लिए था
दूसरों के भले में ही अपना भला
चाहा था उसने ,
इसीलिए कोई बाप बन
कोई भाई बन ,
कोई सखी बन ,
कोई प्रियतम बन
लूट रहा था उसे |
स्नेह, करुना, दया ,
वैराग , त्याग ,
ये ही थे उसके जीवन के प्रतिमान ,
इन्ही के कारण जीवन के हर स्तर पर ठगी गयी ,
क्या गलत थे उसके प्रतिमान
या लोगों को कद्र नहीं थी ,
उन प्रतिमानों की |
बहुत कोशिश की सती को शिव से भिन्न करने की ,
पर भिन्न करने कि इस
कोशिश में
आज सती ने वैसे ही आत्मदाह कर लिया ,
जैसे
दक्ष के यज्ञ कुंड में |
Friday, 15 June 2012
आँखों से बयां होते हैं
रोज जीते हैं और रोज फ़ना होते हैं ,
हम तो बस वक्त हैं , हर पल ही नया होते हैं |
तुम जो कह दो तो रुकें अपनी बदल लें हस्ती ,
वरना अफसाने मेरे सुर्ख सदा होते हैं |
कोई रास्ता नहीं अपना , कोई मंजिल नहीं अपनी ,
हम तो बस वो है जो ख्वाबों में अदा होते हैं |
तेरी हर एक खुशी हमको मुकम्मल कर दे ,
वरना किस्से मेरे आँखों से बयां होते हैं |
Thursday, 14 June 2012
उस तरह कि बन गयी हूँ मैं
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं ,
कि खुद में मस्त रहती हूँ बहुत अब तन गयी हूँ मैं|
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मैं पहले तेरी खातिर टूट कर हर दम बिखरती थी ,
कि अब पत्थर सरीखी ठोस देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मुझे इतना रुलाया है तेरी यादों ने ऐ साहिब ,
कि अपने आंसुओं कि बाढ़ में ही सन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
मै लैला हीर शीरी कि तरह का जज्बा रखती थी ,
तेरी ख्वाहिश पे दुनिया कि तरह कि बन गयी हूँ मैं
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
पहले बस तेरी ही खातिर था जीना और मरना भी ,
मगर अब दोस्त दुनिया भर कि देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
पहले बस तेरी ही खातिर था जीना और मरना भी ,
मगर अब दोस्त दुनिया भर कि देखो बन गयी हूँ मैं |
तू जैसा चाहता था उस तरह कि बन गयी हूँ मैं|
सनम कहना पड़ेगा अब
कठिन राहों में हमको साथ चलना भी पड़ेगा अब ,
कि कितने इम्तिहानों से गुजरना भी पड़ेगा अब|
अगर हों दिल में हसरत ज़िंदगी भर साथ की तुझको ,
तो ये तू जान ले दुनिया से लड़ना भी पड़ेगा अब |
मोहब्बत बंदगी सी है मोहब्बत कि गुजारिश में ,
शमा बन कर के आंधी से झगड़ना भी पड़ेगा अब |
नहीं दो पल का हमको साथ अब तेरा गंवारा है ,
मेरी परछाईं बन ता उम्र चलना भी पड़ेगा अब |
सियासत की कहानी प्यार में लागू नहीं होती ,
कि दिल पर मेरे तुझको राज भी करना पड़ेगा अब |
ये वादा कर न मुझको छोड़ के जायेगा तू तन्हा ,
कसम खा कर के ये तुझको सनम कहना पड़ेगा अब |
जीवन
कौन है किसके साथ में किसका किससे मेल ,
जीवन रेलमपेल है चार पलों का खेल ,
चार पलों का खेल कि इसमे कोई न जीते ,
चाहे दिखे कोई भी कैसा पर अंदर से सब हैं रीते|
जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती
सुबह जब तक तेरी आवाज़ कानों में नहीं पड़ती ,
मुझे ये ज़िंदगी हमदम नहीं है ज़िंदगी लगती |
तू मुझको माफ कर दे मैं तेरी परछाई हूँ मालिक ,
कि तेरे बिन मेरी हस्ती मुझे हस्ती नहीं लगती |
बहुत चाहा है तुझको और पूजा है तुझे मैंने ,
कि तुझ बिन मंदिरों कि मूर्तियां ईश्वर नहीं लगती |
तू धडकन में तू सांसों में तू पलकों में तू आँखों में ,
कि मुझको मुझमे तू दिखता है , खुद में मैं नहीं दिखती|
जो देखूं आइना तो रो ही पड़ती हैं मेरी आँखें ,
कि अपने जीने कि कोई वजह अब तो नहीं दिखती|
वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं
लब पर नाम नहीं भी आये तो भी सब पढ़ लेते हैं ,
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
कैसे छुपाएँ राजे उल्फत कैसे उन्हें बतलाएं ना ,
मेरी हंसी में वो दिखते हैं और आँसू में बहते हैं |
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
भूल गए हैं मुझको मेरे अपने से बेगाना कर ,
अब तो हम उनके सीने मे धडकन बन कर रहते हैं |
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
दर्द का क्या है एक न एक दिन खत्म इसे हों जाना है ,
दोस्त है दो पल का ये मेरे प्यार से इसको सहते हैं |
लोग ये कहते हैं वो मेरी अंखियों में ही रहते हैं |
मुझे माफ कर दो
मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे
अनजाने में भूल हों गयी,
तेरी बातें मान सकी ना ,
गलती ये अब शूल हों गयी |
जब तक तुम थे साथ
सदा ये लगा कहाँ जाओगे तज कर ,
सदा ठिठोली कि थी मैंने ,
हंस कर, रो कर , गा कर , सज कर |
पर इस पल भर कि दूरी ने ,
मुझको ये एहसास कराया ,
तुम बिन कुछ मैं नहीं
कि जैसे नहीं प्राण बिन कोई काया |
बिन तेरे ऐ प्रियतम मेरे ,
जीवन नगरी धूल हों गयी ,
मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे ,
अनजाने में भूल हों गयी |
मैं तो तेरी ही पगली हूँ ,
तेरी खट्टी तेरी मीठी ,
तुझसे अलग नहीं मैं कुछ भी ,
मैं बस तेरी सखी सहेली ,
तू ही हर रिश्ते में मेरे ,
तू धडकन तू सांसों में ,
बिन तेरे स्पर्श हमारी ,
काया भी बेनूर हों गयी ,
मुझे माफ कर दो प्रिय मुझसे ,
अनजाने में भूल हों गयी |
तुम्हारी सती
आज पहली बार
सड़क पर चलते
खुद को अकेला पाया था मैंने |
वो सडकें जिसके ,
मील के पत्थर कभी साथ गिने थे हमने |
पहली बार उस मंदिर के भगवान
अपने नहीं लगे ,
जहाँ तुम्हारी अर्धांगिनी बन ,
तुम्हारी वामांगी बन ,
तुम्हारे सारे दुःख
अपनी झोली में,
मांगे थे मैंने |
आज पहली बार माँ गंगा पर
क्रोध उड़ेल आयी थी मैं ,
शिव और सती के प्रेम कि साछी थी वो ,
तो हमारा प्रेम क्यूँ नहीं दिखा उन्हें ,
जो बस आपके लिए था ,
उनके तट पर ही तो ,
अपना सर्वस्व दे दिया था आपको |
कोई भेद नहीं बचा था ,
हमारे बीच |
क्या तुम्हे याद नहीं आते हैं वो पल
जिसने तुम्हारी सती को
तुम्हारे इतना नज़दीक ला दिया ,
कि आज
तुम्हारे बिन वो
असमर्थ है जीने में भी |
Wednesday, 13 June 2012
मैं स्वार्थी हूँ
क्यूँ इतने दिनों के साथ के बाद
भी समझ नहीं पाए तुम
ह्रदय हमारा|
उन्हें भी कष्ट
नहीं दे सका मेरा ह्रदय ,
जो मुझे ही ठग कर
जीवन के रणछेत्र में अकेला छोड़ गए ,
आज वो भी हैं तुम्हारे मित्रों कि सूची में ,
जो आस्तीन में सांप बन कर
तुम्हे ही ठग रहे थे |
पर कभी भरोसा नहीं किया तुमने
मुझ पर ,
न जाने कौन सा स्वार्थ सिद्ध किया था ,
मैंने तुमसे ,
क्या कभी किसी सांसारिक वस्तु की
अभिलाषा कि थी मैंने |
किसी ने तुमसे कोई वाद्ययंत्र माँगा ,
किसी ने लैपटॉप ,
किसी ने कपड़े मांगे ,
किसी ने कोई इलेक्ट्रोनिक गजेट |
पर मैंने तो बस समय माँगा था ,
साथ माँगा था तुम्हारा ,
दुःख मांगे थे तुम्हारे ,
और यही चाहा था कि तुम्हारे रस्ते के सारे शूल
मेरे पैरों में चुभ जाये ,
गर ये स्वार्थ था
तो मैं स्वार्थी हूँ |
मुझे पहचान न पाया मुझे अपना बताता था ,
वो मुझसे दूर होकर के मुझे कितना सताता था ,
मैं उसको याद करके हर घड़ी रोती सिसकती थी ,
वो मुझको देख कर रोता सदा ही मुस्कुराता था |
उसे लगता था जब चाहेगा मुझको आज़मा लेगा ,
मुझे थामेगा मन से और मन से ही भुला देगा ,
मगर उसको खबर थी ये नहीं कि हम भी शातिर है ,
उसी के वास्ते मिट कर उसी को
वो मुझसे दूर होकर के मुझे कितना सताता था ,
मैं उसको याद करके हर घड़ी रोती सिसकती थी ,
वो मुझको देख कर रोता सदा ही मुस्कुराता था |
उसे लगता था जब चाहेगा मुझको आज़मा लेगा ,
मुझे थामेगा मन से और मन से ही भुला देगा ,
मगर उसको खबर थी ये नहीं कि हम भी शातिर है ,
उसी के वास्ते मिट कर उसी को
एक दिन खुद रोना आ जाये ,
एक दिन तू ढूँढें दुनिया में ,
पर मेरी छब तक न पाए |
ये दुनिया है इस दुनिया में हैं सब स्वारथ के मीत प्रिये ,
सब आश्वासन देने को हैं , कोई न देता साथ प्रिये ,
बस हम तुम हैं एक दूजे के , जीना मरना एक साथ प्रिये ,
इतना जिस दिन तू समझेगा आ जायेगा तू पास प्रिये ,
थोड़ा तो कर विश्वास अगर ,
वो बीते पल कुछ याद आये ,
हम इंतज़ार में बैठे हैं ,
न जाने तू कब आ जाये |
मत दो इतनी तकलीफ हमें,
एक दिन खुद रोना आ जाये |
तुझ संग ही प्रीत लगाई है , तुझ संग ही बाँधा है बंधन ,
संग जीने कि खाई कसमें , तुझ बिन जीवन में है क्रंदन ,
तुम अनुभव से चलते हों बस , मेरा जीवन तेरा वंदन ,
जब तक तुम हों तब तक ही है मेरे जीवन में स्पंदन ,
एक दिन मेरी ये प्रीत देख ,
आँखों में आँसू आ जाये ,
हम इंतज़ार में बैठे हैं ,
न जाने तू कब आ जाये |
मत दो इतनी तकलीफ हमें,
एक दिन खुद रोना आ जाये |
आ जाओ वापस प्रिय वरना ये जीवन सफल नहीं होगा ,
तुझ बिन मरना आसान नहीं तो जीना फिर कैसा होगा ,
सिन्दूर पुकारे है तुझको, बिंदिया भी टेर लगाये है ,
बस आ जाओ वापस तुम बिन जग मुझको बहुत सताए है ,
जो बंधन बांधा था प्रिय ने ,
शायद उस खातिर आ जाये ,
हम इंतज़ार में बैठे हैं ,
न जाने तू कब आ जाये |
मत दो इतनी तकलीफ हमें,
एक दिन खुद रोना आ जाये |
Tuesday, 12 June 2012
बस तुम्हारे लिए
उसकी बाँहों में हर रात ढलने लगे ,
वो मुझे अपने काँधे पे सर रखने दे ,
और खुशियों के परचम लहरने लगे |
बस यही एक अब ख्वाब बाकि मेरा |
दूरियां खत्म हों , फासले हों फ़ना ,
वो मेरे बन के दिल में उतरने लगे ,
सारी दुनिया चले उनके पीछे मगर ,
वो मेरे साथ दुनिया में चलने लगे |
बस यही एक अब ख्वाब बाकि मेरा|
अब यही स्वप्न है इन थकी आँखों का ,
कोई भी अब कहीं हमको दिखता नहीं ,
चाँद में वो दिखे और सितारों में भी ,
फूल बन कर वो मुझमे महकने लगे |
बस यही एक अब ख्वाब बाकि मेरा|
कल तलक कोई रिश्ता नहीं था जहाँ ,
आज वो सबसे मुझको ज़रूरी लगा ,
सांस वो बन गए जिस्म वो बन गए ,
और सीने में दिल बन धड़कने लगे |
बस यही एक अब ख्वाब बाकि मेरा|
Monday, 11 June 2012
आख़िरी अल्फाज़
कहने को बहुत कुछ है मगर कह न सकेंगे ,
इल्ज़ाम पुराने दुबारा सह न सकेंगे |
बातें जो बीत जाती है वो लौटती नहीं ,
दीवाने थे दीवाने हैं दीवाने रहेंगे |
कहने को बहुत कुछ है ..............................|
तू भूल नहीं है कि जिसे भूल जायें हम ,
हम तेरे लिए जीते थे तुझ पर ही मरेंगे ,
कहने को बहुत कुछ है .............................|
एक दौर वो होगा कि मेरी गोद में सर रख ,
दरिया तेरी आँखों से समंदर से बहेंगे |
कहने को बहुत कुछ है .............................|
जिस रोज नहीं होंगे तुझे याद आयेंगे ,
शिकवा भी न करेंगे शिकायत न करेंगे ,
कहने को बहुत कुछ है ...........................|
इन शर्तों पे हमको दिया था प्यार उन्हों ने ,
हम दूर रहेंगे कभी न साथ चलेंगे ,
कहने को बहुत कुछ है ............................|
अब खत्म हैं हम और मेरी सांस भी मद्धम ,
चुपचाप उसे देखेंगे और कूच करेंगे ,
कहने को बहुत कुछ है ............................|
अब ज़िंदगी भी बोझ सरीखी हमें लगे ,
मर जायेंगे तो उसके सदा पास रहेंगे ,
कहने को बहुत कुछ है मगर ....................|
कैसे मिलेगा हमको वो आसान राह से ,
उसको खुदा बना लिया जो था इंसान काम से |
कहते हैं काट देती है पत्थर का दिल भी वो ,
बहती है जो नदी ह्रदय तूफ़ान थाम के |
मुझको तो ख्वाब देखने के पंख दे के वो ,
उड़ भी चुका है मेरी नींदें उजाड़ के |
तकते रहे हम चाँद आसमान का यहाँ ,
वो खुश है किसी और को अपना सा मान के |
एक रोज नहीं, रोज ही पहलू में था मेरे ,
जो आज मुझसे रूठ के बैठा है जान के |
कोई मना के उसको मुझे सौंप के ला दे ,
हम ज़िंदगी भी हार देंगे उसके वास्ते |
Sunday, 10 June 2012
सबने समझाया था तू लूट के ले जायेगा ,
मेरा जीवन , मेरे सपने और मेरी सांसे |
तेरे सीने से लग के रोई थी ..................|
बेसबब करते रहे हम तेरी ख्वाहिश का गुनाह ,
बेसबब बढ़ती रही तेरी लगाई घातें ,
तेरे सीने से लग के रोई थी .................|
ये तुझे इल्म था कि सच ही ज़िंदगी है मेरी ,
फिर भी तुमने बनाई हमसे बेवजह बातें ,
तेरे सीने से लग के रोई थी ................|
तुझको माना था खुदा तुझपे एतबार किया ,
बस इसी दर्द से गुज़री हैं हमारी रातें ,
तेरे सीने से लग के रोई थी मेरी आँखें |
Saturday, 9 June 2012
हमें पाने कि चाहत में कोई बेताब रहता था ,
खुदा से वो दुआ करता था और बेबात रहता था |
वो कहता था ज़माने से बहुत खुश है मगर फिर भी ,
वो रातों को सिसकता था सदा फ़रियाद करता था |
उसे लगता था उसके हों नहीं पायेंगे हम फिर भी ,
हमें अपना समझ कर हक जताता था झगड़ता था |
वो मुझसे कहता था हर बात पूरी हों नहीं सकती ,
मगर एक मांग पर मेरी सितारे तोड़ सकता था |
हमें दिखलाता था दिल कि जगह पत्थर सजाये है ,
मगर वो इस तरह से प्यार को झुठलाया करता था |
जो किस्मत अपनी न मिलती तो हम फिर साथ क्यूँ होते ?
जिसे समझाता था मैं ये उसे मैं प्यार करता था |
Tuesday, 5 June 2012
दिल्ली वालों से गुज़ारिश है मेरी ................
दिल्ली वालों से गुज़ारिश है मेरी ,
कि मेरे दिल का भी ख्याल करें
जो ज़माने से कह रहे थे कि मेरे है वो
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा एतबार करें |
सारी दुनिया से हमें काट कर किया अपना
मेरी आँखों में बसाया था स्वयं का सपना ,
कभी वो टूट कर मेरा भी इंतज़ार करें |
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा ऐतबार करें |
वो नहीं चाहते हम कोई दखल दे ऐ दोस्त ,
उनकी हर बात अपनी आँख बंद कर माने ,
वो अगर मुझसे कहें सांस न ले तो फिर हम ,
खुद को भी खत्म करें और हर कहा माने ,
कोई समझाए अब उन्हें कि वो प्यार को यूँ न शर्मसार करें ,
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा एतबार करें |
दिल्ली वालों से गुज़ारिश है मेरी ................
कि मेरे दिल का भी ख्याल करें
जो ज़माने से कह रहे थे कि मेरे है वो
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा एतबार करें |
सारी दुनिया से हमें काट कर किया अपना
मेरी आँखों में बसाया था स्वयं का सपना ,
कभी वो टूट कर मेरा भी इंतज़ार करें |
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा ऐतबार करें |
वो नहीं चाहते हम कोई दखल दे ऐ दोस्त ,
उनकी हर बात अपनी आँख बंद कर माने ,
वो अगर मुझसे कहें सांस न ले तो फिर हम ,
खुद को भी खत्म करें और हर कहा माने ,
कोई समझाए अब उन्हें कि वो प्यार को यूँ न शर्मसार करें ,
वो अपनी बात पर खुद तो ज़रा एतबार करें |
दिल्ली वालों से गुज़ारिश है मेरी ................
मेरा गहना
अब बहुत हुआ है धोखों पर धोखे खा कर जिंदा रहना ,
इससे तो अच्छा है मिटना अच्छा है अब कुछ न कहना |
वो बार बार ये कहता था कि मेरे बिन वो कुछ भी नहीं ,
अब छोड़ गया है वो मुझको मुश्किल है अब ये गम सहना |
मैं रुकी हुयी एक नदिया थी सागर से मिलने को व्याकुल ,
पर कैसे संभव है रुक कर मिलाना है तो फिर है बहना |
बिंदिया काजल चूडी पायल इन सबका मुझको काम नहीं ,
बस एक तुम्हारा प्रेम प्रिये कहलाता है मेरा गहना |
सती को गरल वरदान में ।
फिर मुझे उलाहने दे कर
उसने कोशिश की है
मुझे खुद से अलग करने की ।
पर उसे मालूम नहीं की
उसे मुझसे भिन्न करने का साहस
अब स्वयं शिव में नहीं ,
वो भी घबराता है
देख मेरा प्रेम उसके प्रति ।
शिव भी अचरज में हैं ,
कैसे अलग करें उसे जो सती
जैसा प्रेम लेकर
अवतरित हुयी है धरती पर ,
उसे अपना शिव मान
जी रही है जीवन ।
उलाहना का गरल अब
उसकी किस्मत का हिस्सा है ,
शिव ने जो विष अपने गरल में धारण किया ,
नहीं उतरने दिया शरीर के बाकि हिस्सों में ,
नहीं थी सामर्थ्य शिव में
इसीलिए दे कर उलाहना
दे दिया शिव ने
सती को गरल वरदान में ।
Monday, 4 June 2012
जीवन के उस पार
फिर वही दुखांत
क्या कभी सुख कि परिणति होगी
क्या कभी मेरे जीवन के इस कीचड़ में भी
कमल जन्म लेगा ;
क्या कभी कोई राम
मुझे भी अहिल्या कि तरह उद्धारेगा ,
बस इसी सोच में चला जा रहा था जीवन ,
हर ने आ कर भावनाओं के पत्थर फ़ेंक
मन में हलचल मचा दी ,
परन्तु ह्रदय सत्य कि समाधी पर था ,
भेद कर लिया उसने
क्या सुख देंगी तुझे यह छडिक जीवन में बंधी
जीवन से लड़ती
अपने सुख के लिए मरती कयाये |
तुझे तो सुख शिव कि शरण में लिखा है ,
जपते हुए
"सत्यम शिवम सुन्दरम"
और
"ओम् नमः शिवाय "
का जाप
तुझे जाना होगा अब इसी छण
जीवन के उस पार |
नहीं मालूम कि तुम सत्य थे
नहीं मालूम कि तुम सत्य थे
या
फिर किसी असत्य ने दस्तक दी थी
मन पर मेरे ,
तुम्हारी आँखों को पढने कि चाह में ,
बार बार आती रही पास तुम्हारे ,
पर कभी मिला ही नहीं सकी नज़रें तुमसे
कभी शर्म के वशीभूत हों ,
कभी प्रेम के ,
और
कभी भय के कि कहीं पढ़ न लूं मैं
तुम्हारी आँखों में वो जो तुम्हारे कर्म कहते हैं |
तुम प्यार के दावे करते रहे और मैं उन्ही को सत्य मान
जीती रही ,
खुश होती रही ,
और
एक दिन तुम्हारी डायरी के पन्नों पर
तुम्हारी ही लेखनी से
कई बार लिखा देखा किसी और का नाम |
फिर भी मन को संजोया
और अपने विश्वास को भी ,
इस जोड़ तोड़ में कि पूछूं या नहीं
मैं जाने कब कह गयी तुमसे ह्रदय कि बात ,
पर स्पस्टीकरण न देकर
तुमने मुझे ही आरोप प्रत्यारोप के
भंवर में फंसा दिया ,
मुझे ही गलत कह
मेरे प्रेम का अनादर कर चले गए तुम
शायद न वापस आने के लिए,
इतने प्रयत्न किये थे तुमने ,
मुझे छोड़ कर जाने के लिए |
इतने प्रयत्न किये थे तुमने ,
मुझे छोड़ कर जाने के लिए |
मेरा इंतज़ार |
कितना द्वन्द है मन में
कि कहूँ या न कहूँ ,
वो पुरानी बातें जिन्होंने मुझे
खत्म कर दिया जीते जी ,
सांस तो लेती हूँ
ह्रदय में स्पंदन भी महसूस करती हूँ ,
फिर भी प्राण नहीं ,
हर पल बस तुम्हारा स्पर्श याद आता है ,
जिसने जीवन को एक नया आयाम दिया था
मैं खुद से कब तुम्हारी मीठी , पगली ,
और न जाने क्या क्या बन गयी थी ,
मेरे लिए अपना घर छोड़
तुम मेरे समीप हमारे नीड़ का
निर्माण कर रहे थे ,
जहाँ हमने वो पल गुज़ारा
जिसने हम दोनों का अंतर खत्म कर दिया ,
दो से एक होने के इस सफर में ,
मैं बस तुम्हारी तुम्हारी होती गयी ,
और तुम हर बार मुझसे दूर और दूर ,
मुझे तुम्हारी कमियां भी अच्छी लगाने लगी ,
और तुम्हे मेरे अंदर कि सारी अच्छाइयां ,
जिनका आभास तुमने मुझे कराया था ,
झूठी लगाने लगी |
अभी भी मन के अंदर
विश्वास लिए बैठी हूँ
तुम लौट कर आओगे ,
एक रोज ,
फिर मुझसे कहोगे
कि मैं ही प्राण हूँ तुम्हारा ,
जीवन का आधार हूँ तुम्हारा ,
पता है कि बहुत छोटा होगा ये इंतज़ार ,
दुनिया में प्यार नहीं
वही है जो तुमने मेरी झोली में डाला है ,
बस फर्क इतना है आज ये मेरे हिस्से में है ,
कल तेरे हिस्से में होगा ,
इंतज़ार
मेरा इंतज़ार |
तुम कहना भी चाहते थे
तुम्हारे साथ
थी जब मैं आज
क्यूँ धूप में तपती हवा भी ,
हों गयी थी शीतल बयार |
क्यूँ भूख का एहसास जागा था ,
क्यूँ पानी में भी लगी थी
गंगाजल जैसी मिठास ,
क्यूँ लगा था कि तेरे
सीने से लगकर रो लूं ,
और अपने किये सारे पाप धो लूं |
क्यूँ ईश्वर दिखा था मुझे तुमने ,
जब तुम्हारे पास होने के एहसास से
मैं खुश भी थी और सहमी भी ,
क्यूँ लग रहा था कि
कहीं खो न दूं ,
वो सुख जो जीवन में पहली बार मिला है ,
प्रेम पाने का सुख ,
बांटा तो बहुत था प्रेम ,
बहुत लोग थे जो थे मेरे लिए अपने ,
पर क्या मैं किसी का अपनी थी ,
अभी तक तो किसी ने इतना स्नेह
नहीं दिखाया था ,
किसी ने नहीं कहा था
कि मैं उसका जीवन हूँ ,
क्यूँ तुम्हारी ख़ामोशी में ढूँढा था मैंने
वो सब कुछ जो मैं सुनना चाहती
और शायद तुम कहना भी चाहते थे |
Sunday, 3 June 2012
ना वादों पर भरोसा है ना बातों पर यकीं तेरी,
कभी पूरी न कि तूने मुरादें एक भी मेरी |
अगर तूने मुझे उस तरह अपनाया नहीं होता ,
तो तुझसे इस कदर जुडती नहीं नजदीकियां मेरी |
मैं तेरे सामने हंस कर बता देती हूँ मैं खुश हूँ ,
मगर दिलकी नमी को जानती तन्हाइयां मेरी |
मैं तुझसे जुड गयी हूँ इस कदर ऐ हमसफ़र मेरे ,
कि मुझको दिख नहीं पाती हैं अब रुसवाइयाँ मेरी |
अगर तू साथ देने का करे वादा तो फिर हम भी ,
चलेंगे साथ तेरे उम्र भर परछाई बन तेरी |
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