Sunday 27 May 2012

हमने देखा है

हंसी आती नहीं हमको कि अब तो हाल ऐसा है 
किसी अपने को खंजर मारते हमने भी देखा है |

वो जो बैठे हैं संसद में है रखवाले सियासत के ,
उन्ही को देश का परचम गिराते हमने देखा है |

सुना था हमने दादी से कि सोने की था ये चिड़िया ,
वतन जिस पर कि कर्जों का लगा अम्बार देखा है |

जिसे हमने मसीहा मान कर मंदिर में रखा है ,
उसी को हमने कत्लो आम के मंज़र में देखा है |

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