अंतर्नाद
Sunday, 27 May 2012
क्रोध
मैंने अरमानो की बस्ती को सिन्दूरी करके ,
उसमे कुछ इस तरह से आग लगा डाली है,
जैसे आकाश भी लोहित हो धधक जाता है,
जब एक नन्ही किरण सूर्य की गुस्साती है |
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment