याद है मुझको बचपन के दिन ,
सुबह जगाये जाते थे ,हम रोते थे नहीं नहाना ,
पर नहलाये जाते थे |
रोज़ वही रोटी और सब्जी जब मिलती थी खाने को ,
रोज़ नहीं मिलता था हमको पार्क खेलने जाने को ,
रोज़ वही होमवर्क का झंझट ,
रोज़ वही आना कानी ,
कितनी कोशिश पर भी हो ना पाती थी मनमानी ,
मम्मी दिन भर धमकती थी .....
शाम को पापा आने दो
और तुम्हारी दिन भर की मुझे शैतानी बतलाने दो ...
पढ़ने लिखने में तो नानी याद तुम्हे आ जाती है
खेल कूद की बातें तुमको इतना क्यों ललचाती है .......
मम्मी की धमकी से डर कर , पल भर को चुप होती थी ,
पापा के आ जाने पर मैं बन बन कर फिर रोटी थी ,
मम्मी ने डाटा है मुझको पापा को बतलाती थी .........
अभी बहुत छोटी हूँ पापा ये कह कर समझती थी .......पापा मेरे गोद बिठा कर पहले गले लगते थे ,
फिर अपनी मीठी बातों का शहद मुझे चखलाते थे .....
समझाते थे बिट्टो मेरी पढ़ना बहुत ज़रूरी है
ना पढ़ना तो बिटिया मेरी बहुत बड़ी कमजोरी है ...
समझदार बन जोगी ,परियों की रानी आएगी ...
दूर देश की सैर कराने वो तुमको ले जाएगी ...
मम्मी पापा लाड करेंगे .....चोकलेट दिलवायेंगे
जब मेरी बिटिया रानी के अच्छे नंबर आयेंगे |..................................
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