लुट गयी रात किसी कमसिन सी ,
आसमां पर कोई भी चाँद न था ,
फिर सितारों को आ गया रोना ,
रुंध गयी वो गले की आवाजें ,
देखा जब चाँद को धरती के साइंस दानों ने ,
गुम हुआ अपने घर की नीली अंगनाई से ,
तब हुआ दर्द जगी प्यास उससे मिलने की ,
याद आया कोई था पास मेरे ,
जिसको मई रोज़ ही ठुकराता था,
आज जब रत अमावास की काली आयी है ,
बादलों में छिपा है चाँद मेरा ,
तब मुझे चाँद की याद आयी है..................
चाँद को देखो चकोरी के नयन से
ReplyDeleteमाप चाहे जो धरा की हो गगन से।
मेघ के हर ताल पर
नव नृत्य करता
राग जो मल्हार
अम्बर में उमड़ता
आ रहा इंगित मयूरी के चरण से
चाँद को देखो चकोरी के नयन से।