Tuesday 29 May 2012

राह तका करते थे

कल तक तो हम चौबारों पर ,
मिटटी के घर बार सज़ा कर ,
अपनी गुडिया के गुड्डे की राह तका करते थे ,
आज खड़े हम बीच सड़क पर ,
अपने आँचल को फैला कर ,
उसी एक अंजन नज़र की देखो बाँट तका करते हैं ,
निर्मोही ने जाल बिछा कर ,
मुझको मछली सा तडपा कर,
ऐसा स्वर्ग बसाया है की हम उसमे निस दिन बसते हैं |

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