Friday 27 July 2012

ऊंचा स्थान

कर रही हूँ कोशिश ,
अपने मृत ह्रदय में प्राण भरने की ,
सांसों  को पुनः जीवन देने की ,
और पुनः तैयार कर रही हूँ
मस्तिष्क के विचारों में पड़े
कुछ मौन विचारों को
शब्द देने की |
और दूसरी ओर तुम
फिर कर रहे हों तैयारी ,
ह्रदय को मत्स्य मान भेदने की  |
क्यूँ तुम बार बार मुझे
खत्म करने का प्रयत्न करते हों ,
क्या बस इसलिए ,
की मैं जानती हूँ ,
तम्हारे सभी भेद ,
तुम्हे बाहर से तो सभी ने देखा ,
पर अंदर से कोई ना जान सका |
कभी मुझे सिया कह
तुमने खुद को राम का दर्जा दिया ,
तो कभी राधा कह
खुद को कृष्ण का मान ,
कभी लक्ष्मी कह खुद को नारायण बना लिया ,
तो कभी शक्ति कह
खुद महादेव बन गए ,
पर बार बार तुम्हारा वो मुझे मान देना
वास्तव में 
खुद को ऊंचा स्थान देना था |



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