Friday 27 July 2012

उनको ही पूजा किये

लोग  अपना बन के हमको यूँ  दगा देने लगे  , 
और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
बंद दरवाज़े दिलो के कर के जब बैठे सभी ,
हमने दिल की सांकलों के सारे ताले तज दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
वो तो अपनों का भी अपना हों नहीं पाया मगर ,
गैर के गम में हमारे दिल ने आँसू खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
 कल तलक जो कहता था कि ज़िंदगी उसकी हैं हम ,
आज गैरों के शहर में वो ही खुद को खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
 वक्त रहते जो परिंदे लौट कर आयी नहीं ,
नीड़ अपने उन परिंदों ने सदा को खो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |
फिर खुदा भी उनकी हसरत के महल का क्या करे ,
नीव के पत्थर ही कमज़ोर जिसने बो दिए |
                      और हम पत्थर मिले जो उनको ही पूजा किये |

2 comments:

  1. pataa nahi aap ka blog mere sath kaise miljul gayaa hai .aap ki post mere sath dikhati hai .meri shayad aap ke sath dikhati hogi ..ise alag karo bhai ..sab gadd madd hai .

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  2. छमा प्रार्थी है आपकी प्रतिक्रिया इतने दिनों तक पढ़ न सके , धन्यवाद की आपने कुछ तो लिखा |
    परन्तु मैं यह नहीं जानती की हम दोनों का ब्लॉग मिल कैसे गया ,
    और मेरे ब्लॉग पर आपकी कवितायेँ नहीं दिखाई देती |
    परन्तु यदि इससे आपको परेशानी है तो आप इसे अलग कर लें |

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