Friday 27 July 2012

मौन सा है छा गया

क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया ,
वो बहुत रूठा है हमसे , गैर उसको भा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
हमने तो अपने खुदा पर छोड़ दी कश्ती कभी ,
अपने हिस्से के गुनाहों कि सज़ा वो पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
वक्त रहते जो समझ लेगा स्वयं की गलतियां ,
बस वही मंझधार में फिर से किनारा पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
मैंने जिसको हद से ज्यादा प्यार से देखा कभी ,
मैं उसी में अपने शिव का बिम्ब देखो पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
उसने धोखों पर दिए हर बार हैं धोखे हमें ,
इसलिए वो आज हर रिश्ते से धोखा खा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
लौट कर आता है अपना ही किया खुद सामने ,
मेरी आँखों कि नमी से इसलिए घबरा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|
पूछती रह जायेंगी सदियाँ ये सदियों तक उसे ,
किन गुनाहों की सज़ा वो उम्र भर तक पा गया |
                           क्या लिखूं अब ज़िंदगी में मौन सा है छा गया|

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