अब बहुत हुआ है धोखों पर धोखे खा कर जिंदा रहना ,
इससे तो अच्छा है मिटना अच्छा है अब कुछ न कहना |
वो बार बार ये कहता था कि मेरे बिन वो कुछ भी नहीं ,
अब छोड़ गया है वो मुझको मुश्किल है अब ये गम सहना |
मैं रुकी हुयी एक नदिया थी सागर से मिलने को व्याकुल ,
पर कैसे संभव है रुक कर मिलाना है तो फिर है बहना |
बिंदिया काजल चूडी पायल इन सबका मुझको काम नहीं ,
बस एक तुम्हारा प्रेम प्रिये कहलाता है मेरा गहना |
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ReplyDeleteतेरे एक सर्द लहज़े ने,
ReplyDeleteहमें चौंका दिया वरना,
मोहब्बत में मोहब्बत से,
तो धोखा खा रहे थे हम ....