Monday 4 June 2012

जीवन के उस पार

फिर वही दुखांत 
क्या कभी सुख कि परिणति होगी 
क्या कभी मेरे जीवन के इस कीचड़ में भी 
कमल जन्म लेगा ;
क्या कभी कोई राम 
मुझे भी अहिल्या कि तरह उद्धारेगा ,
बस इसी सोच में चला जा रहा था जीवन ,
हर ने आ कर भावनाओं के  पत्थर फ़ेंक
मन में हलचल मचा दी ,
परन्तु ह्रदय सत्य कि समाधी पर था ,
भेद कर लिया उसने 
क्या सुख देंगी तुझे यह छडिक जीवन में बंधी 
जीवन से लड़ती
अपने सुख के लिए मरती कयाये |
तुझे तो सुख शिव कि शरण में लिखा है ,
जपते हुए 
"सत्यम शिवम सुन्दरम"
और  
"ओम् नमः शिवाय "
का जाप 
तुझे जाना होगा अब इसी छण
जीवन के उस पार |

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