Monday 4 June 2012

तुम कहना भी चाहते थे

तुम्हारे साथ 
थी जब मैं आज 
क्यूँ धूप में तपती हवा भी ,
हों गयी थी शीतल बयार |
क्यूँ भूख का एहसास जागा था ,
क्यूँ पानी में भी लगी थी 
गंगाजल जैसी मिठास ,
क्यूँ लगा था कि तेरे 
सीने से लगकर रो लूं ,
और अपने किये सारे पाप धो लूं |
क्यूँ ईश्वर दिखा था मुझे तुमने ,
जब तुम्हारे पास होने के एहसास से 
मैं खुश भी थी  और सहमी भी ,
क्यूँ लग रहा था कि 
कहीं खो न दूं ,
वो सुख जो जीवन में पहली बार  मिला है ,
प्रेम पाने का सुख ,
बांटा तो बहुत था प्रेम ,
बहुत लोग थे जो थे मेरे लिए अपने ,
पर क्या मैं किसी का अपनी  थी  ,
अभी तक तो किसी ने इतना स्नेह 
नहीं दिखाया था ,
किसी ने नहीं कहा था 
कि मैं उसका जीवन हूँ ,
क्यूँ तुम्हारी ख़ामोशी में ढूँढा था मैंने 
वो सब कुछ जो मैं सुनना चाहती 
और शायद तुम कहना भी चाहते थे |

1 comment:

  1. Bahut kuch sochta hu
    ki kahunga tumse milkar..
    tumhare saamne aate hi,
    sab kuch bhul jaata hu.....

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