Sunday 3 June 2012



मैंने कल मिटते देखा है ,
दूर खड़े उस एक मनुज को ,
मृत्युंजय का चोगा पहने ,
जीवन  से लड़ते देखा है |
जयी समझ कर खुद को उसने
मृगतृष्णा में देखो पड़के,
अपना जीवन नष्ट किया है ,
खुद को कुछ पथ भ्रष्ट किया है
मैंने कल उस भीष्म सरीखे
मानव को फिर से अपनी ही
एक अटल आग्नेय प्रतिज्ञा
से पीछे हटते देखा है
मैंने कल मिटते देखा है ...........
ह्रदय एक वैराग्य बसाये ,
तन पर धूनी भस्म रमाये ,
मन मस्तिष्क कुंवारा करके ,
आत्मा को बिन ब्याहा रख के ,
मैंने कल एक सन्यासी को ,
जोगिया रंग कि चादर डाले ,
नित्य लगन अनिमेष नयन से ,
किसी  एक अनजान नज़र की ,
राहों को तकते देखा है ,
मैंने कल मिटते देखा है |

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