Monday 4 June 2012

मेरा इंतज़ार |

कितना द्वन्द है मन में 
कि कहूँ या न कहूँ ,
वो  पुरानी बातें जिन्होंने मुझे 
खत्म कर दिया जीते जी ,
सांस तो लेती हूँ
ह्रदय में स्पंदन भी महसूस करती हूँ ,
फिर भी प्राण नहीं ,
हर पल बस तुम्हारा स्पर्श याद आता है ,
जिसने जीवन को एक नया आयाम दिया था 
मैं खुद से कब तुम्हारी मीठी , पगली ,
और न जाने क्या क्या बन गयी थी ,
मेरे लिए अपना घर छोड़ 
तुम मेरे समीप हमारे नीड़ का 
निर्माण कर रहे थे ,
जहाँ हमने वो पल गुज़ारा 
जिसने हम दोनों का अंतर खत्म कर दिया ,
दो से एक होने के इस सफर में ,
मैं बस तुम्हारी तुम्हारी होती गयी ,
और तुम हर बार मुझसे दूर और दूर ,
मुझे तुम्हारी कमियां भी अच्छी लगाने लगी ,
और तुम्हे मेरे अंदर कि सारी अच्छाइयां ,
जिनका आभास तुमने मुझे कराया था ,
झूठी लगाने लगी |
अभी भी मन के अंदर 
विश्वास लिए बैठी हूँ 
तुम लौट कर आओगे ,
एक रोज ,
फिर मुझसे कहोगे 
कि मैं ही प्राण हूँ तुम्हारा ,
जीवन का आधार हूँ तुम्हारा ,
पता है कि बहुत छोटा होगा ये इंतज़ार ,
दुनिया में प्यार नहीं 
वही है जो तुमने मेरी झोली में डाला है ,
बस फर्क इतना है आज ये मेरे हिस्से में है ,
कल तेरे हिस्से में होगा ,
इंतज़ार 
मेरा इंतज़ार |

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