Thursday 14 June 2012

तुम्हारी सती

आज  पहली बार
सड़क पर चलते
खुद को अकेला पाया था मैंने |
वो सडकें जिसके ,
मील के पत्थर कभी साथ गिने थे हमने |
पहली बार उस मंदिर के भगवान
अपने नहीं लगे ,
जहाँ तुम्हारी अर्धांगिनी बन ,
तुम्हारी  वामांगी बन ,
तुम्हारे सारे दुःख
अपनी झोली में,
मांगे  थे मैंने |
आज पहली बार माँ गंगा पर
क्रोध उड़ेल आयी थी मैं ,
शिव और सती के प्रेम कि साछी थी वो ,
तो हमारा प्रेम क्यूँ नहीं दिखा उन्हें ,
जो बस आपके लिए था ,
उनके तट पर ही तो ,
अपना सर्वस्व दे दिया था आपको |
कोई भेद नहीं बचा था ,
हमारे बीच |
क्या  तुम्हे याद नहीं आते हैं वो पल
जिसने तुम्हारी सती को
तुम्हारे इतना नज़दीक ला दिया ,
कि आज
तुम्हारे बिन वो
असमर्थ है जीने में भी |

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