Wednesday 15 August 2012

दिल में है विश्वास नहीं

अब दिल में है विश्वास नहीं ,
जीने की कोई चाह नहीं ,
सब झूठे और मक्कार मिले ,
क्यूँ इस दुनिया में प्यार नहीं |
हमने गंगा बन कर सबके ही पापों का संघार किया ,
हमने भोले बन कर देखो हर बार सदा विषपान किया ,
जिसको चाहा दिल से चाहा बस एक गुनाह यही था पर ,
इस एक समर्पण पर मुझको क्यूँ साथ तेरा वरदान नहीं |
अब दिल में है विश्वास नहीं ,
जीने की कोई चाह नहीं ,
सब झूठे और मक्कार मिले ,
क्यूँ इस दुनिया में प्यार नहीं |

प्यार की शुरुआत

फिर हमसे एक गुनाह की शुरुआत हो गयी ,
सोचा नहीं समझा नहीं ये बात हो गयी |
कैसे तुम्हे समझाएं ये कैसे ये बताएं ,
हमने जलाये दीप फिर भी रात हो गयी |
वरदान में तो हमको मिली थी बड़ी खुशियाँ ,
फिर भी न जाने कैसे ये बरसात हो गयी |
हर बार की तरह है उसी राह पर हमदम ,
जिस राह पे काँटों से थी पहचान हो गयी |
जो हमको मिले थे हमारे दोस्त बन के वो ,
अपने नहीं थे बात सरेआम हो गयी |
फिर से करी रोशन है जिसने जीने की शमाँ ,
उस शख्स से फिर प्यार की शुरुआत हो गयी |

तरफदारी

Monday 13 August 2012

फिर प्रणय की बात होगी|

फिर प्रणय की बात होगी,
रात बीती है बहुत दिन बाद फ़िर है प्रात आई,
और जीवन ने खुशी से फिर करी है यूँ सगाई ,
झूठ सारे खो गए है, सत्य ने अवाज़ दी है,
मौन मुखरित हो रहा हैं, प्रीत ने बरसात की है ,
आज फिर इस नव घड़ी में इक नवल मुसकान होगी,
फिर प्रणय की बात होगी|

तुम्हे आना हो आ जाओ

सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ ,
अकेले लड़ रहे हैं जिंदगी से ये समझ जाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
बहुत नादानियाँ की है बहुत तुमको सताया है ,
अगर जो मानते हो हमको अपना माफ कर जाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
तुम्हारे थे बहुत कुछ हम , हमारे थे बहुत कुछ तुम ,
अगर ये याद हो तुमको तो वापस लौट कर आओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
समझ आती नहीं हमको हमारे दिल की मजबूरी ,
अगर बिन बोले तुम समझो तो हमको भी ये समझाओ |
               सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |
ये दुनिया है बड़ी संगदिल बड़ी झूठी बड़ी मक्कार ,
हमें दुनिया के अच्छे रुख को तुम न बतलाओ |
                सफर पर चल पड़े हैं हम तुम्हे आना हो आ जाओ |

Saturday 11 August 2012

परिचय हुआ है |

आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
मैं भटक कर आयी दुनिया देख ली सारी दिशाएं ,
पर  सकल जग में मिली बस वेदनाएं वेदनाएं ,
टूट कर बिखरी बहुत जब दर्द ने चीत्कार मारी ,
कोई न था साथ मेरे थी तनिक संवेदनाएं |
फिर अकेली बेसहारा ढूँढती कोई किनारा 
प्रश्न खुद से कर रही थी तब मिला मुझको सहारा ,
आज फिर मेरा प्रिये से प्रेमवश परिणय हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
जब किया विश्वास दुनिया पर मिला बस झूठ मुझको ,
प्रेम से परिणय किया तो फिर मिला रणछेत्र मुझको ,
काम , माया , क्रोध के मुझको मिले लाखों पुजारी ,
पर मिला न संत कोई देख ली दुनिया तिहारी ,
आज फिर एक बार सुन शिव ,सत्य का दर्शन हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |
स्वांस  टूटी आस टूटी , हर मनोरथ चाह रूठी ,
प्रेम की हर डोर टूटी ,तिमिर में हर रात डूबी ,
अश्रु फूटे , अधर रूठे , मौन से संगम हुआ था ,
जब लगा था तुम नहीं प्रिय खुद पे ही कुछ भ्रम हुआ था ,
आज तुम जब साथ फिर से ईश का वंदन हुआ है ,
                   आज फिर मेरे निकेतन से मेरा परिचय हुआ है |

सत्य से परिचय हुआ है

आज दिल हल्का हुआ है ,
मान कर सबी गलतियां ,
फिर  सत्य से परिचय हुआ है |

कल तलक हम चल रहे थे ,
भिन्न  पर विश्वास करके,
और  खुद को छल रहे थे ,
अनृत का सम्मान करके,
मधु  सरीखी जिंदागी में ,
गरळ का संचन हुआ है |
                     सत्य से परिचय हुआ है |
दंभ उसको है बहुत , 
वो बन गगनचर उड़ रहा है |
छोड़ कर सारे अनुग्रह ,
राह अपनी चल रहा है ,
इसलिए वह स्वयं ,
अपने आप का दुश्मन हुआ है |
                    सत्य से परिचय हुआ है |
                   



Tuesday 7 August 2012



न होता

चंद बातें




Friday 3 August 2012

चार चार पंक्तियाँ

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