Sunday 27 May 2012

तेरा कोई कसूर नहीं

मेरी ही गलती है सारी 
तेरा कोई कसूर नहीं
मरने का दस्तूर न आया 
जीने का भी शऊर नहीं  |
दिल के दरवाज़े पर सांकल न होती तो अच्छा था ,
हर पल ये एहसास तो रहता तू थोड़ा मजबूर सही |

दीवारों के कान नहीं थे इसका है अफ़सोस हमें ,
वरना कोई ये तो बताता उसको हम मंज़ूर नहीं |

पहली बार ये बारिश हमको अपनी अपनी नहीं लगी ,
उससे मिलकर न जाने क्यूँ ये मुझसे बेनूर हुयी |

मरने का दस्तूर न आया जीने का भी शऊर नहीं |

No comments:

Post a Comment